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________________ २३० ] [ कर्मप्रकृति दाणाइ अचक्खूणं जेट्टा आयम्मि हीणलद्धिस्स। सुहुमस्स चक्खुणो पुण तेइंदिय सव्वपज्जत्ते॥५८॥ शब्दार्थ – दाणाइ – दानान्तराय आदि की, अचक्खूणं - अचक्षुदर्शनावरण की, जेट्ठाउत्कृष्ट, आयम्मि – भव के प्रथम समय में, हीणलद्धिस्स – अल्पतम लब्धि वालों के, सुहुमस्स - सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव के, चक्खुणो - चक्षुदर्शनावरण की, पुण - तथा, तेइंदिय - त्रीन्द्रिय, सव्वपजत्ते - सर्व पर्याप्ति से पर्याप्त। गाथार्थ – अल्पतम लब्धि वाले सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव के प्रथम समय में दानादि पांच अन्तरायों और अचक्षुदर्शनावरण की और संपूर्ण पर्याप्तियों से पर्याप्त त्रीन्द्रिय जीव के चक्षुदर्शनावरण की उत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणा होती है। विशेषार्थ - हीन लब्धि वाले अर्थात् सबसे अल्पतम दान लाभादि के क्षयोपशम वाले तथा अचक्षुदर्शनरूप विज्ञान लब्धि से युक्त ऐसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव के भव के आदि में अर्थात् प्रथम समय में वर्तमान जीव के पांच प्रकार के अन्तराय और अचक्षुदर्शनावरण इन छह प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग की उदीरणा होती है। ___सभी पर्याप्तियों से पर्याप्त त्रीन्द्रिय जीव के पर्याप्ति पूर्ण होने के चरम समय में चक्षुदर्शनावरण के उत्कृष्ट अनुभाग की उदीरणा होती है तथा निहाइपंचगस्स य, मज्झिमपरिणामसंकिलिट्ठस्स। अपुमादि असायाणं निरए जेट्ठा ठिइसमत्ते॥ ५९॥ शब्दार्थ - निहाइपंचगस्स - निद्रादि पंचक की, य - और, मज्झिमपरिणामसंकिलिट्ठस्स- मध्यम संक्लिष्ट परिणामी, अपुमादि – नपुंसकवेद आदि, असायाणंअसातावेदनीय की, निरए – नारक के, जेट्ठा – उत्कृष्ट, ठिइसमत्ते - स्थिति वाले। गाथार्थ – मध्यम संक्लिष्ट परिणामी जीव के निद्रापंचक की उत्कृष्ट उदीरणा होती है तथा नपुंसकवेद आदि और असातावेदनीय की उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा उत्कृष्ट स्थिति वाले नारक के होती है। ___ विशेषार्थ – तत्प्रायोग्य संक्लेश से युक्त मध्यम परिणाम वाले सभी पर्याप्तियों से पर्याप्त जीव के निद्रापंचक की उत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणा होती है। क्योंकि अत्यंत विशुद्ध परिणाम वाले अथवा अत्यंत संक्लिष्ट परिणाम वाले जीव के पांचों निद्राओं में से किसी भी निद्रा का उदय ही नहीं होता है, १. लब्धि के प्रति बंध की उत्कर्षता के कारण।
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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