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________________ २१८ ] [ कर्मप्रकृति त्रिस्थानक और द्विस्थानक। किन्तु यहां अनुभाग उदीरणा का अधिकार है। अतः उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा की अपेक्षा चतुःस्थानक रस वाला है और अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा के अधिकार से चतु:स्थानक, त्रिस्थानक, द्विस्थानक और एकस्थानक रस वाला है। प्रश्न – बंध के अभाव में नपुंसकवेद का एक स्थानक रस उदीरणा में कैसे पाया जाता है? उत्तर – नपुंसकवेद के क्षपण काल में उसका रसघात करते हुए क्षपक जीव के एकस्थानक रस भी पाया जाना संभव है। कर्कश और गुरु स्पर्श नामकर्म बंध की अपेक्षा चतुःस्थानक, त्रिस्थानक और द्विस्थानक रस वाले हैं। किन्तु यहां पर अनुभाग उदीरणा की अपेक्षा द्विस्थानक रस वाले जानना चाहिये। चारों आनुपूर्वी नामकर्म तथा मनुष्य और तिर्यंचों के एकान्त उदय योग्य मनुष्यायु, तिर्यंचायु, मनुष्यगति, तिर्यंचगति, एकेन्द्रिय जाति, द्वीन्द्रिय जाति, त्रीन्द्रिय जाति, चतुरिन्द्रिय जाति, औदारिकसप्तक आदि और अंतिम को छोड़कर शेष चार संस्थान, छह संहनन, आतप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण ये तीस प्रकृतियां बंध की अपेक्षा चतुःस्थानक, त्रिस्थानक और द्विस्थानक रस वाली हैं। किन्तु यहां उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा की अपेक्षा द्विस्थानक रसवाली जानना चाहिये। तथा - वेय एगट्ठाणे, दुट्ठाणे वा अचक्खू चक्खू य। ___ जस्सत्थि एगमवि, अक्खरं तु तस्सेगठाणाणि॥ ४६॥ शब्दार्थ – वेय - (शेष) वेद, एगट्ठाणे – एकस्थानक, दुट्ठाणे - द्विस्थानक, वा - और, अचक्खू - अचक्षुदर्शनावरण, चक्खू - चक्षुदर्शनावरण, य - और, जस्सत्थि – जिसके भी, एगमवि – एक भी, अक्खरं – अक्षर, तु - और, तस्सेगठाणाणि – उसके एक स्थानक वाले। गाथार्थ – शेष वेद, अचक्षु और चक्षुदर्शनावरण एकस्थानक तथा द्विस्थानक रस वाले हैं तथा जिसको एक भी अक्षर का पूर्ण ज्ञान है उसके मतिज्ञानावरण श्रुतज्ञानावरण अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरण एकस्थानक रस वाले हैं। विशेषार्थ -- उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा की अपेक्षा शेष वेद अर्थात् स्त्रीवेद और पुरुषवेद द्विस्थानक रस वाले तथा अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा की अपेक्षा द्विस्थानक और एकस्थानक रस वाले जानना चाहिये। - इसी प्रकार अचक्षुदर्शनावरण और चक्षुदर्शनावरण भी जानना चाहिये । अर्थात् उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा की अपेक्षा द्विस्थानक रस वाले और अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरणा की अपेक्षा द्विस्थानक और
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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