________________
१६८ ]
[ कर्मप्रकृति
तक के चार उदीरणा स्थान और इससे ऊपर (अपूर्वकरण) में चार को आदि लेकर छह तक के तीन उदीरणास्थान होते हैं।
विशेषार्थ – गाथा में दूसरे से लेकर आठवें गुणस्थान के उदीरणास्थानों को बताया है। वे इस प्रकार हैं -
सास्वादनसम्यग्दृष्टि और मिश्रदृष्टि में सात से लेकर नौ प्रकृतिक तक तीन उदीरणास्थान होते हैं, यथा - सात, आठ, नौ।
सास्वादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान – में अनन्तानुबंधी अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन क्रोधादि कषायों में से कोई चार क्रोधादिक, तीन वेदों में से कोई एक वेद, युगलद्विक में से कोई एक युगल इन सात प्रकृतियों की ध्रुव उदीरणा होती है। यहां पूर्वोक्त क्रमानुसार भंगों की एक चौबीसी होती है। इसी सप्त प्रकृतिक उदीरणास्थान में भय या जुगुप्सा के मिलाने पर आठ प्रकृतियों की उदीरणा होती है। इस अष्टप्रकृतिक उदीरणा स्थानों में भंगों की दो चौबीसी होती हैं। उक्त सप्त प्रकृतिक उदीरणास्थान में भय और जुगुप्सा का युगपत प्रक्षेप करने पर नौ प्रकृतियों की उदीरणा होती है। इस नौप्रकृतिक उदीरणास्थान में भंगों की एक चौबीसी होती है।
सम्यग्दृष्टि - मिथ्यादृष्टि गुणस्थान – में अनन्तानुबंधी को छोड़कर कोई तीन क्रोधादिक, तीन वेदों में से कोई एक वेद, युगलद्विक में से कोई एक युगल और सम्यग्मिथ्यात्व इन सात प्रकृतियों की ध्रुव उदीरणा होती है। यहां पूर्वोक्त क्रम से भंगों की एक चौबीसी होती है तथा इसी सप्तक में भय और जुगुप्सा में से किसी एक के मिलाने पर आठ प्रकृतियों की उदीरणा होती है। इस अष्टप्रकृतिक उदीरणास्थान में भंगों की दो चौबीसी होती हैं और भय, जुगुप्सा को युगपत मिलाने पर नौ प्रकृतियों की उदीरणा होती है। इस नौप्रकृतिक उदीरणास्थान में भंगों की एक चौबीसी होती है।
अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान – के उदीरणास्थान एवं भंगों की संख्या यह है – अविरए य छाई अर्थात् अविरत यानी अविरत सम्यग्दृष्टि गुणसथान में छह प्रकृतियों को आदि लेकर नौ तक के चार उदीरणास्थान होते हैं, यथा – छह, सात, आठ, नौ। जो इस प्रकार हैं -
औपशमिक सम्यग्दृष्टि के अथवा क्षायिक सम्यग्दृष्टि अविरत के अनन्तानुबंधी को छोड़ कर कोई तीन क्रोधादिक, तीन वेदों में से कोई एक वेद, युगलद्विक में से कोई एक युगल, इन छह प्रकृतियों की ध्रुव उदीरणा होती है। इस छह प्रकृतिक उदीरणास्थान में पूर्व की तरह भंगों की एक चौबीसी होती है । इसी षट्प्रकृतिक स्थान में भय, जुगुप्सा और वेदक सम्यक्त्व इनमें से किसी एक का प्रक्षेप करने पर सात प्रकृतियों की उदीरणा होती है। इस सप्तप्रकृतिक उदीरणास्थान में भंगों की तीन