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________________ [ १५१ उदीरणाकरण ] 1 और उत्तर प्रकृतियों की अपेक्षा उसके दो विभाग हैं । इसका अभिप्राय यह है कि वह उदीरणा चार प्रकार की होती है यथा • प्रकृति उदीरणा, स्थिति उदीरणा, अनुभाग उदीरणा और प्रदेश उदीरणा । ये एक एक उदीरणा भी दो प्रकार की है १. मूल प्रकृति विषयक और २. उत्तर प्रकृति विषयक । मूल प्रकृति विषयक उदीरणा आठ प्रकार की होती है और उत्तर प्रकृति विषयक उदीरणा के एक सौ अट्ठावन भेद हैं । इस प्रकार उदीरणा का लक्षण और भेद जानना चाहिये । — सादि - अनादि प्ररूपणा - अब सादि - अनादि प्ररूपणा करते हैं । वह दो प्रकार की है। २. उत्तर प्रकृति विषयक। इनमें से पहले मूल प्रकृति विषयक उदीरणा कहते हैं मूलपगईसु - पंचण्ह, तिहा दोन्हं चउव्विहा हो । आउस साइ अधुवा, दसुत्तर सउत्तरासिं पि ॥ २ ॥ पांच, तिहा आयुक आउस्स एक सौ दस उत्तर प्रकृतियों की, पि - शब्दार्थ मूलपगईसु - मूल प्रकृतियों की, पंचह दोहं दो की, चउव्विहा - चार प्रकार, होइ – होती है, अधुवा – अध्रुव, दसुत्तर सउत्तरासिं - - - - १. मूल प्रकृति विषयक और - - - तीन प्रकार, सादि, भी । गाथार्थ पांच मूल प्रकृतियों की उदीरणा तीन प्रकार की है और दो प्रकृतियों की उदीरणा चार प्रकार की है तथा आयु एवं एक सौ दस उत्तर प्रकृतियों की भी उदीरणा सादि और अध्रुव होती है। विशेषार्थ मूल प्रकृतियों में ज्ञानावरण, दर्शनावरण, नाम, गोत्र और अन्तराय इन पाँच मूल प्रकृतियों की उदीरणा तीन प्रकार की होती है, यथा स्पष्टीकरण इस प्रकार है अनादि, ध्रुव और अध्रुव । जिसका ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन कर्मों की उदीरणा क्षीणमोह गुणस्थान (बारहवें गुणस्थान) का समयाधिक आवलिकाल जब तक शेष नहीं रहता है तब तक सब जीवों के अवश्य होती है। नाम और गोत्र कर्म की उदीरणा सयोगि केवल के चरम समय तक होती है । इसलिये इन पाँचों कर्मों की उदीरणा अनादि है । अभव्यों के ध्रुव और भव्यों के अध्रुव उदीरणा होती है। वेदनीय और मोहनीय इन दो कर्मों की उदीरणा चार प्रकार की होती है यथा सादि - अनादि, ध्रुव और अध्रुव । इनमें से वेदनीय की उदीरणा प्रमत्तसंयत गुणस्थान तक होती है, उससे आगे नहीं मोहनीय की उदीरणा सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक होती है, उससे आगे नहीं । इसलिये अप्रमत्त आदि
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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