________________
१४४ ]
[ कर्मप्रकृति
८. अपवर्तना उत्कृष्ट निक्षेप पूर्व से विशेषाधिक समयाधिक आवलिका द्विकहीन
स्थिति प्रमाण ९. सर्व कर्मस्थिति पूर्व से विशेषाधिक उत्कृष्ट निक्षेप, उत्कृष्ट अतीत्थापना
बंधावलिका सहित होने से इस प्रकार स्थिति की उद्वर्तना और अपवर्तना जानना चाहिये। अनुभाग उद्वर्तन - अपवर्तन
अब अनुभाग सम्बन्धी उद्वर्तन और अपवर्तन के कथन का क्रम प्राप्त होता है। उसमें से पहले अनुभागोदवर्तन को बतलाते हैं -
चरमं नोव्वट्टिज्जइ, जावाणंताणि फड्डगाणि ततो।
उस्सक्किय ओकनुइ, एवं उव्वट्टणाईओ॥७॥ शब्दार्थ – चरमं - चरम, अन्त्य, नोव्वट्टिजइ - उद्वर्तना नहीं की जाती है, जावाणंताणि- यावत् अनन्त, फड्डगाणि - स्पर्धकों की, ततो – उससे, उस्सक्किय – नीचे के, ओकनुइ – उद्वर्तना की जाती है, एवं – इसी प्रकार, उव्वट्टणाईओ - अपवर्तना में भी।
____ गाथार्थ – चरम स्पर्धक की एवं उससे लेकर यावत् अनन्त स्पर्धकों की उद्वर्तना नहीं की जाती है। किन्तु उससे नीचे के स्पर्धकों की उद्वर्तना की जाती है। इसी प्रकार अपवर्तना में भी जानना चाहिये।
__विशेषार्थ - चरम अर्थात् अन्तिम स्पर्धक की उद्वर्तना नहीं होती है और न द्विचरम स्पर्धक की और न त्रिचरम स्पर्धक की। इस प्रकार तब तक कहना चाहिये जब तक चरम स्पर्धक से नीचे अनन्त स्पर्धक प्राप्त होते हैं। इसका यह तात्पर्य है कि सर्व स्थितियों से उपरितन आवलिका के असंख्यातवें भाग प्रमाण जो जघन्य निक्षेप और उसके नीचे आवलिका प्रमाण जो अतीत्थापना है, उनके स्थितिस्थानगत सभी स्पर्धक उद्वर्तित नहीं किये जाते हैं। किन्तु उनसे नीचे उतर कर जो स्पर्धक (अनुभाग स्पर्धक) समय मात्र स्थितिगत हैं, उनको उद्वर्तित किया जाता है । उनको उद्वर्तित कर आवलिका प्रमाण स्थितिगत अनन्त स्पर्धक को अतिक्रमण कर उससे उपरिवर्ती जो आवलि के असंख्यातवें भाग प्रमाण समयगत स्पर्धक हैं, उनमें निक्षिप्त किया जाता है और तब उससे भी नीचे उतर कर द्वितीय समय मात्र स्थितिगत जो स्पर्धक हैं उनको उद्वर्तित करता है, तब आवलि मात्र स्थितिगत स्पर्धकों का उल्लंघन कर उपरिवर्ती समयाधिक आवलिका के असंख्यातवें भाग मात्रगत स्पर्धकों में निक्षिप्त किया जाता है । इस प्रकार जैसे जैसे नीचे उतरते हैं, वैसे वैसे निक्षेप बढ़ता है किन्तु अतीत्थापना