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[कर्मप्रकृति
अब निक्षेप का निरूपण करते हैं -
आवलियअसंखभागाइ जाव कम्मट्ठिइ त्ति निक्खेवो।
समउत्तरालियाए, साबाहाए भवे ऊणे ॥२॥ शब्दार्थ – आवलियअसंखभागाइ – आवलि के असंख्यातवें भाग से लेकर, जाव - तक, कम्मट्ठिइत्ति - कर्मस्थिति प्रमाण, निक्खेवो - निक्षेप, समउत्तरालियाए - समयाधिक आवलिका, साबाहाए - अबाधा सहित, भवे – होता है, ऊणे – न्यून, हीन।
गाथार्थ - आवलिका के उस असंख्यातवें भाग से लेकर अबाधा सहित समयाधिक आवलिका से हीन कर्मस्थिति प्रमाण निक्षेप होता है।
. विशेषार्थ – यहां निक्षेप दो प्रकार का है - १. जघन्य और २. उत्कृष्ट । इनमें से जो आवलिका के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितियों में कर्मदलिक निक्षेप होता है, वह जघन्य निक्षेप है। वह इस प्रकार समझना चाहिये कि -
सर्वोत्कृष्ट स्थिति के अग्रभाग से नीचे आवलिका और आवलिका के असंख्यातवें भाग नीचे उतरकर उससे अधस्तनी जो स्थिति है उसका दलिक अतीत्थापनावलिका प्रमाण स्थितियों का उल्लंघन कर उपरितनी जो आवलिका असंख्यातवें भाग वाली स्थितियां हैं, उनमें निक्षेपण किया जाता है। आवलि के मध्यवर्ती स्थितियों में नहीं, क्योंकि ऐसा ही स्वभाव है। इसलिये यह जघन्य दलिक निक्षेप है। ऐसा होने पर आवलिका के असंख्यातवें भाग से अधिक आवलिका प्रमाण स्थितियों में उद्वर्तना नहीं होती है, यह सिद्ध हुआ और ऐसी अवस्था में उत्कृष्ट स्थिति बंध होने पर उद्वर्तना योग्य स्थितियां बंधावलिका रूप अबाधा और उपरतनी असंख्यातवें भाग से अधिक आवलिका को छोड़कर शेष सभी जानना चाहिये। वह इस प्रकार कि बंधावलिका के अन्तर्गत कर्मदलिक सकल करणों के अयोग्य होते हैं, इस नियम के अनुसार बंधावलिका के अन्तर्गत स्थितियां उद्वर्तना के योग्य नहीं हैं और न अबाधा के अन्तर्गत स्थितियां उद्वर्तना के योग्य होती हैं। क्योंकि उनका अतीत्थापना रूप से पहले प्रतिपादन किया जा चुका है और आवलि के असंख्यातवें भाग से अधिक आवलि प्रमाणकाल भावी उपरिवर्ती स्थितियां पूर्वोक्त युक्ति से उद्वर्तना के योग्य नहीं हैं।
अब निक्षेप का विचार करते हैं -
तब एक आवलिका और आवलिका के असंख्यातवें भाग प्रमाण ऊपर से नीचे उतरकर दूसरी अधोवर्ती स्थिति उद्वर्तित की जाती है तब एक समय अधिक आवलिका का असंख्यातवां भाग निक्षेप का विषय होता है और जब (उसके नीचे की) तीसरी स्थिति उद्वर्तित की जाती है तब दो समय