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________________ ९२ ] [ कर्मप्रकृति द्वितीय समय में असंख्यात गुणित दलिक उत्कीर्ण करता है, उससे भी तृतीय समय में असंख्यात गुणित दलिक उत्कीर्ण करता है। इस प्रकार तब तक कहना चाहिये जब तक अन्तर्मुहूर्त का चरम समय प्राप्त होता है। यहां पर असंख्यात रूप गुणाकार पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण वाला जानना चाहिये। इसी प्रकार सभी स्थितिखंडों में जानना चाहिये। प्रश्न – विवक्षित स्थितिदलिकों को उत्कीर्ण करके कहां प्रक्षेपण करता है ? उत्तर – कुछ स्थितिदलिकों का स्वस्थान में और कुछ स्थितिदलिकों का परस्थान में प्रक्षेपण करता है। किसमें कितने कर्मदलिकों को प्रक्षिप्त करता है ? अब यह बात विशेष स्पष्टता के साथ निरूपित की जाती है - प्रथम स्थितिखंड के प्रथम समय में जो कर्मदलिक अन्य प्रकृतियों में प्रक्षिप्त होते हैं वे अल्प होते हैं और जो स्वस्थान में ही नीचे प्रक्षिप्त किये जाते हैं वे उससे असंख्यात गुणित होते हैं उससे भी द्वितीय समय में जो स्वस्थान में प्रक्षिप्त किये जाते हैं वे उससे असंख्यात गुणित होते हैं और जो कर्मदलिक पुनः पर प्रकृतियों में प्रक्षिप्त किये जाते हैं, वे प्रथम समय में परस्थान में प्रक्षिप्त दलिकों से विशेषहीन होते हैं। तृतीय समय में जो दलिक स्वस्थान में प्रक्षिप्त किये जाते हैं वे द्वितीय समय के स्वस्थान में प्रक्षिप्त दलिकों से असंख्यात गुणित होते हैं और जो पर प्रकृतियों में प्रक्षिप्त किये जाते हैं, वे द्वितीय समय में परस्थान में प्रक्षिप्त दलिकों से विशेषहीन होते हैं। इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त के चरम समय तक कहना चाहिये। इसी प्रकार सभी स्थितिखंडों में द्विचरम स्थिति खंड पर्यन्त कहना चाहिये। अब चरमखंड की उत्कीरणा विधि कहते हैं - चरम स्थितिखंड द्विचरम स्थिति खंड की अपेक्षा असंख्यात गुणा होता है। वह चरम स्थितिखंड भी अन्तर्मुहूर्त काल के द्वारा उत्कीर्ण किया जाता है। उसका जो प्रदेशाग्र है वह उदयावलिकागत प्रदेशाग्र को छोड़कर शेष सभी परस्थान में प्रक्षिप्त करता है। वह इस प्रकार - प्रथम समय में अल्प, द्वितीय समय में असंख्यात गुणित, उससे भी तृतीय समय में असंख्यात गुणित प्रदेशाग्र परस्थान में प्रक्षिप्त करता है। इस प्रकार चरम समय तक जानना चाहिये। चरम समय में जो प्रदेशाग्र (दलिक) पर प्रकृतियों में प्रक्षिप्त किया जाता है, वह सर्वसंक्रम कहलाता है - चरम समये तु यत्परप्रकृतिषु प्रक्षिप्यते दलिकं स सर्वसंक्रममुच्चते। इसका कालप्रमाण इस प्रकार है - उस समय जितने प्रमाण वाला द्विचरम स्थिति सम्बंधी कर्मदलिक चरम समय में पर प्रकृतियों में संक्रमाता है, उतने प्रमाण वाले यदि चरम स्थिति खंड का कर्मदलिक प्रति समय अपहृत किया जाये तो वह चरम स्थितिखंड असंख्यात उत्सर्पणियों और अवसर्पणियों के द्वारा निर्लेप होगा। यह काल का प्रमाण समझना चाहिये।
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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