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________________ संक्रमकरण ] [ ९१ उद्वलनासंक्रम अनन्तानुबंधीचतुष्क, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, देवद्विक, नरकद्विक, वैक्रियसप्तक, आहारकसप्तक, मनुष्यद्विक, उच्चगोत्र इन सत्ताईस प्रकृतियों के पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिखंड को सर्वप्रथम अन्तर्मुहूर्तकाल के द्वारा उत्कीर्ण करता है। तत्पश्चात पुनः पल्योयम के असंख्यातवें भाग प्रमाण दूसरे स्थितिखंड को उत्कीर्ण करता है। परन्तु केवल प्रथम स्थिति खंड से विशेषहीन खंड को अन्तर्मुहूर्तकाल के द्वारा उत्कीर्ण करता है। उसके पश्चात भी पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण तीसरे स्थिति खंड को उत्कीर्ण करता है, किन्तु यह तृतीय खंड द्वितीय स्थितिखंड से विशेषहीन होता है और उसे अन्तर्मुहूर्तकाल के द्वारा उत्कीर्ण करता है। इस प्रकार पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिखंडों को पूर्व-पूर्व के स्थितिखंड से विशेषहीन विशेषहीन तब तक कहना चाहिये, जब तक द्विचरम स्थितिखंड प्राप्त होता है। यह सभी स्थितिखंड एक अन्तर्मुहूर्तकाल के द्वारा उत्कीर्ण किये जाते हैं। इस उद्वलनासंक्रम में प्ररूपणा दो प्रकार से की गई है - अनन्तरोपनिधा, परंपरोपनिधा। अनन्तरोपनिधा से प्रथम स्थितिखंड की स्थिति बहुत है, इससे द्वितीय स्थितिखंड की स्थिति विशेषहीन है, उससे भी तृतीय स्थितिखंड की स्थिति विशेषहीन है। इस प्रकार द्विचरम स्थितिखंड तक उत्तरोत्तर विशेषहीन विशेषहीन स्थितिखंड जानना चाहिये। इस प्रकार यह अनन्तरोपनिधा से प्ररूपणा जानना चाहिये। . अब परम्परोपनिधा से प्ररूपणा की जाती है कि प्रथम स्थितिखंड की अपेक्षा कितने ही स्थितिखंड स्थिति की अपेक्षा असंख्यात भागहीन होते हैं, कितने ही स्थितिखंड संख्यात भागहीन, कितने ही स्थितिखंड संख्यात गुणहीन और कितने ही स्थितिखंड असंख्यात गुणहीन होते हैं। यदि इन स्थितिखंडों के प्रदेशों का प्रदेशापेक्षा चिन्तन किया जाये तब अनन्तरोपनिधा के अनुसार प्रथम स्थितिखंड से द्वितीय स्थितिखंड दलिकों की अपेक्षा विशेषाधिक होता है। इस प्रकार आगे-आगे स्थिति खंड दलिकों की अपेक्षा से विशेषाधिक तब तक कहना चाहिये, जब तक कि द्विचरम स्थितिखंड प्राप्त होता है। यह तो प्रदेशों की अपेक्षा अनन्तरोपनिधा की प्ररूपणा है और पुनः प्रदेशों की अपेक्षा से परंपरोपनिधा प्ररूपणा इस प्रकार जानना चाहिये - प्रथम स्थितिखंड के दलिकों की अपेक्षा कुछ असंख्यातभाग अधिक, कुछ संख्यातभाग अधिक कुछ संख्यातगुण अधिक और कुछ असंख्यातगुण अधिक होते हैं। स्थितिखंडों की उत्कीर्णा विधि स्थितिखंडों के उत्कीर्ण करने की विधि यह है – प्रथम स्थिति में अल्पदलिक उत्कीर्ण करता है,
SR No.032438
Book TitleKarm Prakruti Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year2002
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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