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________________ २९६ कर्मप्रकृति ४. गोलाकार 0 बिन्दु रूप एक-एक बिन्दु एक-एक समय रूप निषेक का सूचक है तथा बिन्दु के मध्य में दी हुई संख्या उस समय उदय में आने वाले कर्मदलिकों की संख्याप्रमाण की सूचक है। ५. संख्यारहित तीन गोलाकार बिन्दु अबाधाकाल के सूचक हैं। ६. बिन्दु के ऊपर दिये गये अंक निषेक संख्या के क्रम के तथा बिन्दु के नीचे दिये गये अंक स्थितिकाल के सूचक हैं। ७. इस लता की निषेकरचना की प्ररूपणा की विधा के दो प्रकार हैं-१. अनन्तरोपनिधा, २. परंपरोपनिधा। जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है अनन्तरोपनिधाप्ररूपणा-प्रथम समय से द्वितीय समय में विशेषहीन, द्वितीय समय से तृतीय समय में विशेषहीन, यावत बंधे हुए कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति पर्यन्त अनुक्रम से प्रतिसमय उत्तरोत्तर विशेषहीन कहना चाहिये। अतः अबाधाकाल को छोड़कर प्रथम समय में बहुत द्रव्य (५१२) दिया गया है और आगे के उत्तरोत्तर प्रत्येक स्थितिसमय में ४८०,४४८,४१६ इत्यादि रूप से विशेषहीन, विशेषहीन दलिक प्रक्षेप किये गये हैं। परंपरोपनिधाप्ररूपणा-इस विधा में बीच के स्थानों का अतिक्रमण करने के पश्चात् जो स्थान आता है, उसमें द्विगुणवृद्धि या द्विगुणहानि का दिग्दर्शन कराया जाता है। प्रस्तुत में हानि का क्रम निर्देश किया है कि पल्योपम के असंख्येयभाग प्रमाण स्थितियों का उल्लंघन करने पर द्विगुणहानि होगी । जैसे कि प्रकृत लता में प्रथम स्थान से ८ स्थान रूप पल्योपम के असंख्यातवें भाग आगे जाने पर २५६ और उससे आगे पुनः ८ स्थानरूप पल्योपम के असंख्यातवें भाग आगे जाने पर १२८ रूप द्विगुणहानि होती है। इसी प्रकार आगे-आगे ८-८ स्थान रूप पल्योपम के असंख्यातवें भाग जाने पर क्रमशः ६४, ३२,१६ संख्यारूप द्विगुणहानि लता में दिखाई है।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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