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________________ २५८ कर्मप्रकृति १४४५०४ क १४४७५४ ख १४५००४ क १४५२५४ क १४५५०४क १४५७५४ क.१४६००४ ख १४६२५४ क १४६५०४ क १४६७५ क १४७००४ क १४७२५४ ख १४७५०४ क १४७७५ x क १४८००४ क १४८२५ x क १४८५०४ ख १४८७५४ क १४९००४ क १४९२५४ क १४९५०४ क १४९७५४ ग १५०००४ क १५०२५४क १५०५०४ क.१५०७५४ क १५१००४ ख १५१२५४ क १५१५०४ क १५१७५४ क १५२००४ क १५२२५४ ख १५२५०४ क १५२७५४ क १५३००४ क १५३२५४ क १५३५०४ ख १५३७५४ क १५४००४ क १५४२५४ क १५४५०४ क १५४७५४ ग १५५००४ क १५५२५४ क १५५५०४ क १५५७५४ क १५६००,१५६०१, १५६०२, १५६०३, १५६०४, १५६०५, १५६०६, १५६०७, १५६०८, १५६०९, १५६१०, १५६११, १५६१२, १५६१३, १५६१४, १५६१५, १५६१६, १५६१७, १५६१८, १५६१९, १५६२०, १५६२१, १५६२२, १५६२३, १५६२४-० (बिन्दु षट्स्थानक की समाप्ति का सूचक है।) २२. षट्स्थानक में अधस्तनस्थानप्ररूपणा का स्पष्टीकरण अधस्तनस्थानप्ररूपणा विवक्षित वृद्धि की अपेक्षा नीचे की वृद्धि की विवक्षा करना । जिसका स्थापनापूर्वक स्पष्टीकरण इस प्रकार है १. अनन्तगुणवृद्धि, २. असंख्यातगुणवृद्धि, ३. संख्यातगुणवृद्धि, ४. संख्यातभागवृद्धि, ५. असंख्यातभागवृद्धि, ६. अनन्तभागवृद्धि। . यह प्ररूपणा पांच प्रकार की है १. अनन्तरमार्गणा, २. एकान्तरितमार्गणा, ३. द्वयन्तरितमार्गणा, ४. त्र्यन्तरितमार्गणा, ५. चतुरन्तरितमार्गणा। १. अनन्तरमार्गणा बीच में अन्य कोई भी वृद्धि न रखकर विवक्षित से नीचे की वृद्धि की प्ररूपणा करना । यथा (१) प्रथम असंख्यातभागवृद्धि की अपेक्षा अनन्तभागवृद्धि के स्थान की प्ररूपणा। (२) प्रथम संख्यातभागवृद्धि की अपेक्षा असंख्यातभागवृद्धि के स्थान की विचारणा । इस प्रकार पांचवीं प्रथम अनन्तगुणवृद्धि की अपेक्षा असंख्यातगुणवृद्धि के स्थान की विचारणा । इस मार्गणा में पांच (५) स्थान हैं। २. एकान्तरितमार्गणा-- विवक्षित वृद्धि से नीचे बीच में एक वृद्धि को छोड़कर प्ररूपणा करना। यथा--प्रथम संख्यातभागवृद्धि के स्थान की अपेक्षा अनन्तभागवृद्धि के स्थान की विचारणा। इस विचारणा में चार (४) स्थान हैं। ३. यन्तरितमार्गणा... विवक्षित वृद्धि से नीचे बीच में दो वृद्धि को छोड़कर प्ररूपणा करना। यथा--प्रथम संख्यातगुणाधिक वृद्धि के स्थान की अपेक्षा अनन्तभागवृद्धि के स्थान की प्ररूपणा। इस मार्गणा में तीन (३) स्थान हैं । ४. अन्तरितमार्गणा विवक्षित वृद्धि से नीचे बीच में तीन वृद्धि को छोड़कर प्ररूपणा करना। यथा-प्रथम असंख्यातगुणवृद्धि के स्थान की अपेक्षा अनन्तभागवृद्धि के स्थान की प्ररूपणा। इस मार्गणा में दो (२) स्थान हैं।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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