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________________ २२४ कर्मप्रकृति १३: सयोगिकेवली मूल ४ उत्तर ४२ ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४, अंतराय ५=१४ का उदय बारहवें गुणस्थान के अंतिम समय तक ही रहता है, अतः ५५-१४=४१ तथा तीर्थंकर नामकर्म का उदय सम्भव है । अतः ४१+१=४२ प्रकृतियों का उदय संभव है। १४. अयोगिकेवली मूल ४ उत्तर १२ औदारिकद्विक (औदारिकशरीर, औदारिकअंगोपांग) अस्थिरद्विक (अस्थिरनाम, अशुभनाम), खगतिद्विक (शुभविहायोगति, अशुभविहायोगति), प्रत्येकत्रिक (प्रत्येकनाम, शुभनाम, स्थिरनाम), संस्थानषट्क (समचतुरस्र, न्यग्रोध, सादि, वामन, कुब्ज, हुंड), अगुरुलघुचतुष्क (अगुरुलघु, उपघात, पराघात, उच्छ्वास नाम), वर्णचतुष्क (वर्ण, गंध, रस, स्पर्श), निर्माणनाम, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वज्रऋषभनाराचसंहनन, दुःस्वर, सुस्वर, साता या असातावेदनीय में से कोई एक, यह ३० प्रकृतियां १३ वें गुणस्थान के अंतिम समय तक ही उदय को पा सकती हैं। अतः इनको घटाने पर शेष ४२..३०=१२ प्रकृतियां १४ ३ गुणस्थान में रहती हैं। शेष जो १२ प्रकृतियां हैं, उनका उदय .१४. वें गुणस्थान के अंतिम समय तक रहता है, वे यह हैं सुभगनाम, आदेयनाम, यशःकीर्तिनाम, साता-असाता में से कोई एक वेदनीय कर्म, त्रसत्रिक (वसनामकर्म, बादरनामकर्म, पर्याप्तनामकर्म), पंचेन्द्रियजाति, मनुष्यायु, मनुष्यगति, तीर्थकरनाम, उच्चगोत्र=१२। कोई मनुष्यानुपूर्वी को ग्रहण करके १३ प्रकृतियां मानते हैं। ११. ध वबंधी आदि इकतीस द्वार यंत्र ................ अनुक्रम द्वार नाम ज्ञानावरण दर्शनावरण वेदनीय मोहनीय आयु नाम गोत्र अन्तराय कुल ० १. ध्रुवबंधी २. अध्रुवबंधी ३. ध्रुवोदयी ४. अध्रुवोदयी ५ ४ ० १ ० १२ ० ५ २७ - ५. ध्रुवसत्ता - ५ ४ . २१ . ९ ० २६/२८ ५ ५ ० - ६. अध्रुवसत्ता ७. घातिनी ८. अघातिनी ९. परावर्तमान १०. अपरावर्तमान ११. शुभ १२. अशुभ १३० २८ ४५/४७ ___७५ ९१ २९ ४२ ५ . ५ ४ . २ . १ २३ ३ . ४ . ३ ५५ १२ ३७ २ ० १ ० ५ ० .
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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