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कर्मप्रकृति
८. उससे जघन्य स्थितिबंध असंख्यात गुणा होता है, क्योंकि उसका प्रमाण अन्तःकोडाकोडी सागरोपम है। क्योंकि श्रेणी पर नहीं चढ़ने वाले भी संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव जघन्य रूप से भी अन्तःकोडाकोडी सागरोपम प्रमाण ही स्थितिबंध करते हैं।
९. उस जघन्य स्थितिबंध से भी स्थितिबंधस्थान संख्यात गुणित हैं। उनमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय के स्थितिबंधस्थान कुछ अधिक उनतीस (२९) गुणित होते हैं, मिथ्यात्वमोहनीय के स्थितिबंधस्थान कुछ अधिक उनहत्तर (६९) गुणित होते हैं और नाम व गोत्र के स्थितिबंधस्थान कुछ अधिक उन्नीस (१९) गुणित होते हैं ।
१०. उनसे उत्कृष्ट स्थिति विशेषाधिक होती है, क्योंकि उसमें जघन्य स्थिति और अबाधा का प्रवेश हो जाता है।
सरलता से समझने के लिये जिनका प्रारूप इस प्रकार है--
क्रम स्थान का नाम
अल्पबहुत्व
प्रमाण
-
अल्प, उससे असंख्यात गुणा
अन्तर्मुहूर्त प्रमाण उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्तहीन ७००० वर्ष समयप्रमाण
१. जघन्य अबाधा २. अबाधास्थान ३. कंडकस्थान ४. उत्कृष्ट अबाधा
अबाधा स्थान प्रमाण विशेषाधिक
५. द्विगुणहानिस्थान
असंख्यात गुण
,
"
६. निषेकस्थान (एक द्विगुणहानि में) ७. अर्थकंडक ८. जघन्य स्थितिबंध ९. स्थितिबंधस्थान १०. उत्कृष्ट स्थितिबंध
७००० वर्ष प्रमाण, क्योंकि उसमें जघन्य अबाधा का प्रवेश हो गया है पल्योपम के प्रथम वर्गमूल के असंख्यातवें भाग समयप्रमाण असंख्यात पल्योपम वर्गमूल प्रमाण पल्यो० का असंख्यातवां भाग अन्तःकोडाकोडी प्रमाण (श्रेणिरहित) अन्तर्महर्तहीन ७० कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण ७० कोडाकोडी सागरोपमप्रमाण
संख्यात गुण विशेषाधिक
संजी-असंज्ञी पंचेन्द्रिय का आयुकर्म में उत्कृष्ट स्थितिबंधादि स्थानों का अल्पबहुत्व१. संज्ञी पंचेन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकों में प्रत्येक के आयु की जघन्य अबाधा सबसे
कम है। २. उससे जघन्य स्थितिबंध संख्यातगुणा है, जो क्षुल्लकभव रूप होता है।