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बंधनकरण
१२१ उनसे भी असंख्यात गुणित अनुभागवृद्धि वाले त्रिसामयिक अनुभागबंधस्थान होते हैं, उनसे भी असंख्यात गुणित वृद्धि वाले द्विसामयिक अनुभागबंधस्थान होते हैं।
' 'दोसु पासेसु' इति अर्थात् अष्टसामयिक अनुभागबंधस्थानों से अनन्तरवर्ती दोनों पार्श्व वाले क्रम से एक-एक समय हीन वाले सप्तसामयिक आदि अनुभागबंधस्थान असंख्यात गुणित अनभागवद्धि वाले तब तक कहना चाहिये, जब तक कि चतुःसामयिक अनुभागबंधस्थान प्राप्त होते हैं। उनसे ऊपर त्रिसामयिक और द्विसामयिक अनुभागबंधस्थान क्रम से असंख्यात गुणित अनुभागवृद्धि वाले कहना चाहिये।
अब सभी अनुभागबंधस्थानों के समुदाय का आश्रय करके उनकी विशेष संख्या का निरूपण करते हैं--
हमगणि पवेसणया, अगणिक्काया य तैसि कायठिई। ..
कमसो असंखगुणियाण (अ) ज्झवसाणाणि चणुभागे ॥४१॥ शब्दार्थ--सुहुम-सूक्ष्म, अगणि-अग्निकाय में, पवेसणया-प्रवेश करने वाले, अगणिक्काया-अग्निकाय रूप, य-और, तेसि-उनकी, कायठिई-कायस्थिति, कमसो-अनुक्रम से, असंखगुणियाण-असंख्यात गुणित, अमवसाणाणि-अध्यवसाय, च-और, अणुभागे-अनुभाग में । ___ गाथार्थ-सूक्ष्म अग्निकाय में प्रवेश करने वाले तथा अग्निकाय रूप से स्थित जीव एवं अग्निकाय की कायस्थिति, ये तीनों अनुक्रम से असंख्यगुणित हैं और उनसे भी अनुभागबंधस्थान असंख्यातगुणित होते हैं।
विशेषार्थ--सूक्ष्म अग्नि में अर्थात् सूक्ष्म अग्निकायिक जीवों में प्रवेशन (उत्पत्ति) जिनका हो रहा है, वे सूक्ष्म अग्निप्रवेशक जीव कहलाते हैं तथा जो जीव अग्निकाय रूप से अवस्थित हैं, वे अग्निकायिक कहलाते हैं तथा उन अग्निकाय वाले जीवों की कायस्थिति को अग्निकाय-स्थितिकाल कहते हैं। ये तीनों अनुक्रम से असंख्यात गुणित हैं । इसी प्रकार जो अध्यवसाय अनुभागबंध के विषय में होते हैं, वे तथा कार्य में कारण के उपचार रूप से व्यवस्थित हैं, वैसे अध्यवसाय के द्वारा निवर्त्यमान अर्थात् आगे अनुभागबंधस्थान रूप से परिणमित होने वाले हैं, ऐसे अनुभागबंधस्थान क्रम से असंख्यात गुणित हैं । कहा भी है
१. चतु:सामयिक आदि अनुभागबंधस्थानों का अल्पबहुत्व डमरूक के आकार के समान समझना चा
आकार परिशिष्ट में देखिये। उस आकार में अष्टसामयिक विभाग के अनन्तर उभय पार्श्ववर्ती सप्तसामयिक आदि चतु:सामयिक विभाग पर्यन्त तो परस्पर तुल्य हैं, लेकिन उसके बाद के उत्तरपार्श्ववर्ती चतुःसामयिक के अनन्तर के त्रि और द्वि सामयिक में अपने से पूर्व की अपेक्षा अल्पबहुत्व जानना चाहिये।