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बंधनकाल्न
वर्गणा में उन्यासी (७९) और चौथी वर्गणा में अस्सी (८०) रसाविभाग होते हैं । इस प्रकार इस दूसरे अनुभागबंधस्थान के चौथे स्पर्धक में (७ ७ +७९+८०=३१४) तीन सौ चौदह रसाविभाग प्राप्त होते हैं । असत्कल्पना से दूसरे अनुभागबंधस्थान के इन चारों स्पर्धकों के रसाविभाग (१९४+२३४ + २७४+३१४=१०१६) एक हजार सोलह सिद्ध होते हैं।
इस प्रकार प्रथम अनुभागबंधस्थान के साविभागों की अपेक्षा दूसरे अनुभागबंधस्थान में रसाविभाग संख्यातगुणित ही प्राप्त होते हैं । उत्तर-उत्तर के अनुभागबंधस्थान में पूर्व-पूर्व अनुभागबंधस्थान की अपेक्षा अधिक और अधिकतम ही सिद्ध होते हैं, किन्तु कहीं पर भी पूर्वस्थान के रसाविभाग की अपेक्षा उत्तरस्थान के रसाविभाग अनन्तभाम से अधिक प्राप्त नहीं होते हैं।
इसी प्रकार परमाणुओं की अपेक्षा भी अनन्तभाग को अधिकता संभव नहीं है, क्योंकि जैसे-जैसे अनुभाग बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे ही पुद्गल परमाणुा भी अल्प और अल्पतर होते जाते हैं। इसलिए प्राथमा अनुभागबंधस्थानगत परमात्रों की अपेक्षा दूसरे अनुनामबंधस्थान में परमाणु कुछ कम ही प्राप्त होते हैं, अनन्तभाग से अधिक प्राप्त नहीं होते हैं। इस प्रकार आगे-आमे के अनुभागबंधस्थानों में पूर्व-पूर्व के अनुभागबंधस्थानों की अपेक्षा अल्प अल्पतर फरमाणु जानना चाहिये ।
... स्पर्वकों की अपेक्षा भी प्रथम अनुभामबंधस्थान आदि में सर्व जीवों की राशि के प्रमाण से भागाहार संभव नहीं है। क्योंकि प्रथम स्थानादिगत स्पर्धक अभव्यों से अनन्तमुणित और सिद्धों के अनन्तवें भाग की कल्पना से अत्यन्त अल्प होते हैं ।। ....... . उत्तर-यह पाइस्थानकप्ररूपणा संयमणी आदि संबंधी सभी षट्स्थानकों में व्यापक लक्षण के रूप से कही जाती है ।' इससे यद्यपि अनन्तगुफी वृद्धि वाले स्थानों से पूर्ववर्ती स्थानों में सर्व जीव प्रमाण वाली अनन्तराशि से स्पर्धकों की अपेक्षा भागाहार संभव नहीं है, तो भी आगे-आगे के स्थानों में तथा अन्य भी द्वितीय आदि षट्स्थानों में और सभी संयमश्रेणी आदि के स्थानों में उक्त भागाहार का होना संभव है। इसलिये प्रश्नकर्ता के कथन से प्रकृत में कोई विरोध नहीं आता है, क्योंकि बहुलता से उक्त कथन सर्वत्र संभव है तथा-सर्वजीवप्रमाणेन राशिमा भामोहियले अर्थात् सर्वजीकों प्रमाण वाली राशि के द्वारा भामाहार किया जाता है, इस वचन से भी अनन्तगुणित वृद्धि वाले स्थान से पूर्व-पूर्व के स्थानों की अपेक्षा उत्तर-उक्तर के स्थानों की संख्या सबसे कम अनन्तभाग से अधिक जानना चाहिये । यद्यपि पूर्व-पूर्क स्थानों की अपेक्षा उत्तरउत्तर. के स्थानों में कुछ हीन, हीनतर ही परमाणु प्राप्त होते हैं, तपापि, अल्प, अल्पतर. परमाणुओं वाली वर्गणा का होना संभव है। इसलिये ऊपर कहे हुए स्वरूप वाले स्पर्धकों की बहुलता. विरुद्ध नहीं है।
इस प्रकार षट्स्थानप्ररूपणा का कथन जानना चाहिये। अब अधस्तनस्थानप्ररूपणा का
१. संयमश्रेणी आदि स्थानों में जिस पद्धति से सर्व षट्स्थानक की प्ररूपणा की गई है, उसी पद्धति का अनुसरण ___करके यह अनुभाग की षट्स्थानरूपणा भी की. है। .. २. षटस्थानप्ररूपणा का स्पष्टीकरण परिशिष्ट में किया गया है।