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________________ बंधनकरम संख्यातगुणाधिक अनुभागबंधस्थान कहना चाहिये । ये संख्यातगुण वद्धि वाले अनुभागबंधस्थान भी तब तक कहना चाहिये, जब तक कि वे प्रथम अनन्तभाग वृद्धि वाले अनुभागबंधस्थान कंडक के तुल्य होते हैं । तत्पश्चात् पूर्व परिपाटी से पुनः संख्यातगुणाधिक स्थान के बदले असंख्यातगुणाधिक अनुभागवृद्धि वाला एक स्थान कहना चाहिये। इसके पश्चात् मूल से प्रारंभ करके जितने स्थान व्यतीत हुए, उतने ही स्थानों का पुनः अतिक्रमण करके दूसरा असंख्येयगुणाधिक वृद्धि वाला अनुभागबंधस्थान कहना चाहिये । - ये असंख्येयगुणाधिक अनुभागबंधस्थान प्रथम मूलभूत अनन्तभागवृद्धि वाले अनुभागकंडक के समान होते हैं। तदनन्तर पूर्व परिपाटी से अनुभाग वृद्धि करते हुए फिर असंख्येयमुणाधिक अनुभागवृद्धि वाले बंधस्थान के स्थान पर अनन्त गुणित अर्थात् अनन्त गुणी अनुभागवृद्धि से अधिक एक अनुभागबंधस्थान. कहना चाहिये । तदनन्तर मूल से आरंभ करके जितने अनुभागबंधस्थान व्यतीत हुए हैं, उतने ही स्थान उल्लंघन करके दूसरा अनन्तगुणाधिक वृद्धि वाला स्थान कहना चाहिये। इस प्रकार ये अनन्तगुणाधिक वृद्धि वाले स्थान तब तक कहना चाहिये, जब तक कि वे प्रथम अनन्तभाग वृद्धि वाले अनुभागबंधस्थान कंडक के समान होते हैं ।' प्रश्न-तत्पश्चात् पूर्व परिपाटी से पांच वृद्धि के अनन्तर फिर अनन्तगुणाधिक अनुभागवृद्धि वाला स्थान उत्पन्न होता है या नहीं ? ___ उत्तर-षट्स्थानक की वृद्धि समाप्त हो चुकने से अनन्तगुणाधिक अनुभागवृद्धि वाला स्थान उत्पन्न नहीं होता है । यह प्रथम षट्स्थानक समाप्त हुआ । अब इस षट्स्थानक में (१) अनन्तभाग वृद्धि, (२) असंख्येयभाग वृद्धि, (३) संख्येयभाग वृद्धि, (४) संख्येयगुण वृद्धि, (५) असंख्येयगुण वृद्धि और (६) अनन्तगुण वृद्धि, किस प्रमाण वाले अनन्तवें भाग से या असंख्यातवें भाग से या संख्यातवें भाग से अधिक होती है अथवा किस प्रमाण वाले अनन्त, असंख्येय और संख्येय गुणाकार से वृद्धि होती है ? इस जिज्ञासा का समाधान आगे की गाथा में करते हैं । सव्वजियाणमसंखेज्जलोग संखेज्जगस्स जेटुस्स । ___भागो तिसु गुणणा तिसु छट्ठाणमसंखिया लोगा ॥३७॥ शब्दार्थ-सव्वजियाणं-सर्व जीव प्रमाण से, असंखेन्जलोग-असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण से, संखेज्जगस्स-संख्यात से, जेट्ठस्स-उत्कृष्ट, भागो-भागाकार, तिसु-प्रथम तीन वृद्धि में, गुणणा-गुणाकार, तिसु-(अंतिम) तीन वृद्धि में, छट्ठाणं-षट्स्थान, असंखिया-असंख्यात, लोगा-लोकाकाश प्रदेश । १. उक्त कथन का आशय यह है कि अनन्तगुण वृद्धि रूप जो स्थान प्राप्त होता है, उसको अनन्तंभाग वृद्धि की राशि प्रमाण जानना चाहिये। २. उक्त कथन का यह आशय है कि पूर्वोक्त षट्स्यानक की परिपाटी में अनन्तभाग वृद्धि, असंख्यातभाग वृद्धि, संख्यातभाम वृद्धि, संख्यातगुण वृद्धि और असंख्यातगुण वृद्धि, ये पांच वृद्धियां तब तक कहना चाहिये, जब तक कंडक से ऊपर अनन्तगुण वृद्धि कहने का स्थान आता है। किन्तु उस स्थान में अनन्तगुण वृद्धि नहीं कहना चाहिये।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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