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महात्म्य लगा। अतः वह प्रतिदिन जंगलमें गायोंके चरते समय मुनिराजके चरणोंमें बैठ जाता
और मुनिभगवंतकी मुद्रा मेढेकी भाँति देखा ही करता। उसे मुनिराजकी वीतरागी मुद्रा देखकर अतिशय बहुमान आने लगा। मुनिभगवंत कुछ लिखते थे। वे लिखे ताड़पत्र वहीं पेड़की कोटरमें रख देते थे। ग्वाला प्रतिदिन घंटों तक मुनिभगवंतको इस तरह बड़े भावसे निरखा करता था।
मुनिराज जिस वृक्षके नीचे ध्यान करते थे उस वृक्षकी कोटरमें ताड़पत्र होनेसे जंगलमें दाह लगने
पर भी वह वृक्ष सुरक्षित रहा, अतः ग्वाले द्वारा कोटरमें लिखित पत्ते पर पुष्प चढ़ाना
किसी एक दिन उस जंगलमें आग लगी। वृक्ष सब जल गये। आग शांत होने पर वह उसी वृक्षके पास आया, जहाँ वह मुनिराजको अक्सर देखा करता था। उसने आश्चर्यसे देखा, कि उस वृक्षको कुछ नहीं हुआ था। वृक्षमें रखे हुए ताड़पत्र पर लिखित पत्रोंको भी वैसा ही पाया। उसको पढ़ना नहीं आता था। अतः किसी योग्य व्यक्तिको दूंगा, यह सोच वह उन ताड़पत्रोंको बड़े श्रद्धाभावसे लेकर घर पर आ गया। उसे घरके एक आलेमें बड़े आदरसे रखा। प्रतिदिन उसकी भक्ति, आरती, पूजा, अर्चना आदि करने लगा।
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