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भगवान आचार्यदेव
श्री शिवार्य अपरनाम शिवकोटि
मुनिधर्मके आचार प्ररूपक, समाधि - मरणका विस्तारसे वर्णन करता तथा दर्शन, ज्ञान, चारित्र व तपरूप चार आराधनाओंका उत्तम वर्णन करनेवाला दिगम्बर वाङ्गमय 'भगवती आराधना' अपनेमें एक अनूठा ग्रंथ है।
इसी ग्रंथकी रचना करनेवाले आचार्य शिवार्य हैं । आपके आगमोंमें शिवनन्दि, शिवगुप्त, शिवकोटि आदि अपरनाम अनेक मिलते हैं। आपकी रचना, काल आदिके आधारसे अक्सर इतिहासविदोंका मानना है, कि 'आप आचार्य समन्तभद्रदेवके शिष्य जो काशीदेशके राजा थे। वे समन्तभद्रस्वामी द्वारा स्वयंभूस्तोत्र पढ़ते समय शिवलिंग फटकर चन्द्रप्रभ भगवानका निविम्ब प्रकट होने पर चमत्कारसे प्रभावित होकर मुनिदीक्षा धारण करनेवाले आचार्य 'शिवकोटिसे' भिन्न आचार्य हैं। पर इस बात पर सभी एकमत नहीं है, क्योंकि आपके समन्तभद्राचार्यके शिष्य होनेके उल्लेख भी मिलते हैं। अलंकारों आदिकी प्रयुक्ति आदिसे रहित, आपके ग्रंथमेंसे उत्तम आगम- सिद्धान्तमें पारगामित्व, नीति, सदाचार, काव्यशैलीका अच्छा ज्ञान द्वारा पांडित्य व साहित्य दृष्टि आदिकी आपमें प्रतिभा झलकती है। आपके सहिष्णुता, विनयवंतपना, पूर्वाचार्योंका भक्तपना, गुरुओं द्वारा रचित सूत्र व अर्थकी सम्यक् आत्मानुभूतिसह जानकारीकी अद्भुतता आदि सभी गुण एक मात्र 'भगवती आराधना' में झलकते हैं ।
आप 'पाणितलभोजी संघके आचार्य थे। दिगम्बर संप्रदायकी पट्टावलियों, अभिलेखों, ग्रंथ-प्रशस्तियों या श्रुतावतार आदिकी परम्परामें आपका नाम उपलब्ध नहीं होता है, फिर भी आपका 'भगवती आराधना' ग्रंथ ही आपकी ख्यातिके लिए पर्याप्त है। आपने अपने 'भगवती आराधना' ग्रंथमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र व सम्यक्तप— इन चार आराधनाओं का वर्णन किया है। आपका यह ग्रंथ २१६६ गाथाओंमें रचित है। आपने आराध्य, आराधक, आराधना व आराधनाका फल वर्णन करते हुए बताया है, कि रत्नत्रय
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आपके समयमें श्वेताम्बर मत इस तरह भिन्न नहीं हुआ था कि वह बिलकुल अलग धारा हो, अतः आपको श्वेताम्बरसे भिन्न दिखाने हेतु 'पाणितलभोजी' के रूपमें पहचाने जाते थे।
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