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भगवान आचार्यदेव
श्री भद्रबाहुस्वामी ( प्रथम )
भगवान महावीरके निर्वाण पश्चात् गौतमस्वामी, सुधर्मास्वामी व जम्बूस्वामी नामक तीन केवली हुए । तत्पश्चात् विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन तथा भद्रबाहु ( प्रथम ) – ऐसे पाँच श्रुतवली हुए हैं।
पाँचवे श्रुतकेवली भद्रबाहुस्वामीके बारेमें ऐसा माना जाता है, कि वे सुख-संपत्तिसे भरपूर पुण्ड़वर्द्धनदेशके कोटपुर शहरमें पिता शशिशर्मा पुरोहित व माता सोमश्रीके भाग्यशाली पुत्र थे। आपके जन्म पर माता-पिताने उत्सव किया था । पुत्र बिलकुल कामकुमारकी भािँ तेजस्वी, देदीप्यमान, उन्नत, सुविशाल भालयुक्त था। माता - पिताने पुत्रका नाम भद्रबाहु रखा ।
सभीको विनोद प्राप्त कराता हुआ बालक दिनोंदिन वृद्धिगत होता हुआ, कुमार अवस्थामें पहुँचा । एकबार नगरके बाहर अन्य मित्रोंके साथ वह बटा ( गोल गेंदनुमा ठोस वस्तु - गोली ) खेल रहा था। कोई भी मित्र एकके ऊपर एक बटे चढ़ाते चढ़ाते मात्र तीनचार ही बटे चढा पाते थे; वहाँ कुमार भद्रबाहुने एकके ऊपर एक ऐसे १४ बटे चढाये ।
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જયદે
बालक भद्रबाहु द्वारा एकके
ऊपर एक बटे
चढ़ाना व आचार्य
गोवर्धनस्वामीका बालकके इस कौतुक पर
नजर पड़ना