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भगवान आचार्यदेव श्री ब्रह्मदेवजी
अध्यात्मकलाके मर्मज्ञ आचार्य ब्रह्मदेवजी अध्यात्म जगतमें प्रसिद्ध हैं। भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवके प्राकृतत्रयकी श्री जयसेनाचार्यदेवने, जो टीका रची; ऐसे आचार्य ब्रह्मदेवजीकी
शैली, आचार्य जयसेनजी (सप्तम) जैसी होनेसे, संभव है, कि आचार्य जयसेनजीको आचार्य ब्रह्मदेवजी रचित द्रव्यसंग्रहकी टीका प्राप्त हुई हों। उन टीकाओंकी आचार्य जयसेनजी पर काफी असर हुई। आपने भी वही शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ और तात्पर्यार्थ—ऐसे पाँच-पाँच अर्थोंसे सभर टीका की है। आपकी शैली, भाषा आदि
आचार्य जयसेनजी(सप्तम्)वत् बाल ब्रह्मचारी आत्मलीन आचार्य बहादेवजी होनेसे किसी किसीको शंका हो
जाती है, कि आचार्य जयसेनजी व आचार्य ब्रह्मदेवजी एक ही हों। आप जयसेनाचार्यसे पूर्ववर्ती होने चाहिए, क्योंकि जयसेनाचार्यने अपनी टीकामें द्रव्यसंग्रहका आधार दिया है।
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