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________________ भगवान आचार्यदेव श्री यशोभद्र प्रखर तार्किकके रूपमें भगवान जिनसेनजीने आपका स्मरण किया है। आदिपुराणमें बताया है विदुष्विणीषु संसत्सु यस्य नामापि कीर्तितम् । निखर्वयति तद्गर्व यशोभद्रः स पातु नः॥ अर्थात् विद्वानोंकी सभामें जिनका नाम कह देने मात्रसे सभीका गर्व दूर हो जाता है, वे यशोभद्र हमारी रक्षा करें। जैनेन्द्र व्याकरणमें "क्ववृषिमृजां यशोभद्रस्य" (१-१९९) सूत्र आया है। अतः आचार्य जिनसेनजीके द्वारा उल्लिखित आचार्य यशोभद्रजी और आचार्य पूज्यपादके जैनेन्द्र व्याकरणमें निर्दिष्ट भगवान यशोभद्रजी एक ही है। पर समयकी अपेक्षा योग्य नहीं प्रतीत होता है। आपका समय ईसुकी छठी शती मध्यपाद होना चाहिये। आचार्यदेव यशोधर वर्षाऋतुमें ध्यानस्थ आचार्य श्री यशोभद्रजी भगवंतको कोटि कोटि वंदन । (104)
SR No.032436
Book TitleBhagwan Mahavir Ki Acharya Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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