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भगवान आचार्यदेव
श्री गृद्धपिच्छ उमास्वामी
जिनेन्द्र शासनकी प्रचलित पट्टावलियों व शिलालेखों परसे जैन इतिहासकारोंने काफी उहापोह पश्चात् यह स्वीकार किया है, कि भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवके पट्टशिष्यके रूपमें आसीन हुए, ऐसे भगवान उमास्वामी आचार्यदेव थे। आपने जिनागम उल्लिखित मोक्षमार्गको सूत्ररूपमें रचा होनेसे उसका नाम 'तत्त्वार्थसूत्र' है; जिसमें सात तत्त्वोंका स्वरूप विस्तृतरूपसे बताया गया है तथा उसमें मोक्षमार्गका स्वरूप भी आ जाता होनेसे उसका अपरनाम 'मोक्षशास्त्र' है । यह शास्त्र इतना गंभीर है, कि उस पर विविध टीकाएँ रची गई हैं। उसमें श्री समन्तभद्राचार्य रचित 'गन्धहस्ति महाभाष्य', श्री पूज्यपाद स्वामीकी 'सर्वार्थसिद्धि', श्री अकलंकाचार्य रचित 'तत्त्वार्थराजवार्तिक' व श्री विद्यानंदिआचार्य रचित 'तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिक' आदि प्रमुख हैं। इस तरह इस ग्रंथकी बहुधा टीकाएँ ' तत्त्वार्थ' के नामसे शुरू होनेसे इस ग्रंथका प्राचीन नाम ' तत्त्वार्थसूत्र' रहा होगा, ऐसा कई इतिहासकारोंका मंतव्य है ।
यह ग्रंथ सूत्रोंके रूपमें रचित होनेसे इसे संक्षिप्तमें 'सूत्रजी' भी कहा जाता है।
भगवान वादिराज मुनिराजके कथानुसार 'आकाशमें उड़नेकी इच्छा करनेवाले पक्षी, जिस प्रकार अपने पंखोंका सहारा लेते हैं, उसी प्रकार मोक्षरूपी नगरको जानेके लिए भव्यलोग जिस मुनीश्वरका सहारा लेते हैं; उन महामना अगणित गुणोंके भण्डारस्वरूप गृद्धपिच्छ नामक मुनिमहाराजके लिए मेरे सविनय नमस्कार हैं । — इस भांति गृद्धपिच्छ उमास्वामी जिनेन्द्रशासनके प्रसिद्ध आचार्य भगवन्त थे ।
प्राप्त शिलालेखोंके अनुसार आप भगवान कुंदकुंदके वंशमें उत्पन्न हुए थे, व प्राणीरक्षा हेतु गृद्धपिच्छोंको धारण किया था । उन लेखोंमें आपका नाम उमास्वामी व उमास्वाति ऐसे दोनों रूपोंमें मिलता है । किन्हीं लेखोंमें आपका नाम 'गृद्धपिच्छ' के रूपमें भी दिखाया गया है तथा आपके एक शिष्यका नाम ' बलाकपिच्छ' था, ऐसा भी प्रतीत होता है ।
आपने 'द्रव्य'का स्वरूप बताते हुए तीन सूत्र दिये हैं । ( १ ) सत् द्रव्य लक्षणम् । (२) उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् । ( ३ ) गुणपर्ययवद् द्रव्यं ।
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