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भगवान आचार्यदेव श्री यतिवृषभ
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श्री जयधवला टीकाके निर्देशानुसार, आचार्य यतिवृषभने आर्यमंक्षु और नागहस्तिसे कसायपाहुड़की गाथाओंका सम्यक् प्रकार अध्ययनकर अर्थ अवधारण किया और कसायपाहुड़पर संक्षिप्त शब्दावलीमें चूर्णिसूत्रोंकी रचना करके महान अर्थको निबद्ध किया। यदि आचार्य यतिवृषभ चूर्णिसूत्रोंकी रचना न करते, तो संभव है, कि कसायपाहुड़का अर्थ ही स्पष्ट न हो पाता। अतः दिगम्बर परम्परामें चूर्णिसूत्रोंके प्रथम रचयिता होनेके कारण आचार्य श्री यतिवृषभका अत्यधिक महत्त्व है।
धवलाकारने यतिवृषभाचार्यके चूर्णिसूत्रोंको वृत्तिसूत्र भी कहा है, क्योंकि 'जिसमें महान् अर्थ हो, जो हेतु, निपात और उपसर्गसे युक्त हो, गम्भीर हो, अनेकपद समन्वित हो, अव्यवच्छिन्न हो और तथ्यकी दृष्टिसे जो धारा प्रवाहिक हो, उसे चूर्णिसूत्र कहते हैं' अर्थात् जो तीर्थंकरकी दिव्यध्वनिसे निस्सृत (प्रवाहित) बीजपदोंका अर्थोद्घाटन करनेमें समर्थ हो वह चूर्णिपद है। यथार्थतः चूर्णिपदोंको बीजसूत्रोंकी विवृत्त्यात्मक सूत्र-रूप रचना कही जाती है और उसमें तथ्योंको विशेषरूपमें प्रस्तुत किया जाता है। आशय यह है, कि आचार्यवर यतिवृषभके चूर्णिसूत्रोंका महत्त्व ‘कसायपाहुड'की गाथाओंसे किसी तरह कम नहीं है। गाथासूत्रोंमें जिन अनेक विषयोंके संकेत उपलब्ध होते हैं, चूर्णिसूत्रोंमें उनका उद्घाटन मिलता है। अतः ‘कसायपाहुड़' और 'चूर्णिसूत्र' दोनों ही आगमविषयकी दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है।
श्री यतिवृषभाचार्यका व्यक्तित्व आगमव्याख्याताकी दृष्टि से अत्यधिक है। आपने आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता और अर्थाधिकार इन पाँच उपक्रमोंकी दृष्टिसे सूत्ररूप अर्थोद्घाटन किया है।
चूर्णिसूत्रकार आचार्यवर यतिवृषभके व्यक्तित्वमें निम्नलिखित विशेषताएँ उपलब्ध होती
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१. आत्मसाधक होनेके साथ वे श्रुताराधक भी थे। २. नन्दिसूत्रके प्रमाणसे वे कर्मप्रकृतिके भी ज्ञाता सिद्ध होते हैं।
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