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दृष्टांत : १५३-१५६
१५३. गधे री बात क्यूं करौ ? किणहि पूछयौ-उजाड़ मै साधु थाको नै सहजे गाडी आवतो थौ तिण गाडा ऊपर साधू नै वैसाणनै गांम मै आण्यौ, उणनै कांई थयो ?.
जद स्वामीजी बोल्या-गाडी नहीं हो नै पुंणीया गधेडा आवता ते ऊपर बैसांणनै गांम मै आण्यौ तिण नै कांइ थयौ ?
जद ऊ बोल्यौ-गधा री बात क्यूं करौ।
स्वामीजी बोल्या-थे गाडै बसांण आण्या धर्म कहो तो गधे बैसाण आंण्यां हि धर्म । साधू रै तो दोनूं ही अकल्पनीक है ।
१५४. पांचू नै साथै छोड़ी फतजी आदि पांच जण्यां ने चंडावल मै स्वामीजी कह्यौ-थारै कपड़ी चाहीजे सो लेवी । त्यां मांग्यौ तिण प्रमाणे दीधौ । मन मै संका पड़ी कपड़ी बधतो दीसै । तिवारै अखैरामजी स्वामी नै मेलने त्यांरे ठिकाणे सूं कपड़ी मंगायनै मापीयो । कपड़ो बधतो नीकळयो । पछै स्वामीजी त्यांनै घणी निषेधी। आगमीय काळ नी अप्रतीत जांण ने पांचं जण्यां नै साथै छोड़ दीधी।
१५५. समाई नहीं तो संबर ढूंढार मै एक भायौ । तिण र बीरभाणजी संका पाड़ी। पछै स्वामीजी कनै आयो । सामायक नौ उपदेश दीयौ । जद ते बोल्यौ-सामायक तो न करू, कदाच सामायक मै थांने स्वामीजी महाराज कहिणी आय जावै तो मोनै दोष लागे।
जद स्वामीजी बोल्या-एक मुहुरत नौ संवर कर । इम कही संवर कराय पछै उण सूं चरचा कर भिन्न-भिन्न भेद बताय उण री संका मेटनै पगां लगाय दीयो।
१५६. कठेइ सूत्र मै चाल्यो इज हुवेला नाथजी द्वारा मै नैणसिंहजी रौ जमाई उदेपुर सूं आयौ । नैणसिंहजी कह्यौ-महाराज यांनै समझावो।
जद स्वामीजी समझावा लागा । साधां नै आधाकर्मी थानक मै रहीणौ नहीं।
जद ते बोल्यो-ठीक है, न रहिणी । वलि स्वामीजी कह्यौ-केयक साध नांम धराय नै आधाकर्मी थांनक मै रवै है।
जद ते बोल्यौ-रेवै छै तो कठेयक सूत्र मै चाल्यौ हुवैला।