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भिक्खु दृष्टांत
पछै लोकां स्वामीजी नै आय कह्यौ - अबे तौ आप ही पधारौ । जद स्वामीजी अन भारमलजी स्वामी पधार्या । हिवै चरचा मांडी । स्वामीजी बोल्या - चरचा आचारंग आदि इग्यारा अंग सूत्रां री करणी । आचारंग सूत्र अ० ४ सू० २०,२१ मै एहवी कह्यौ छै
“सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता हंतव्वा - सर्व प्राण भूत जीव व हणवा । एत्थ वि जाणह णत्थित्थ दोसो - इहां धर्म नै काजे जीव हयां दोष नहीं । अणारिय वयणमेयं - ए अनार्य नौ वचन छै ।” एह पाठ स्वामीजी बतायौ । जद खंतिविजय बोल्यो - इणमै खोट है । ल्याव रे चेला ! आंपां री पड़त । पोथी खोलने देख तौ । तिण मै पिण इम हीज नीकल्यौ । तिवारे स्वामीजी बोल्या - वाचो | जद परषदा मै वाचै नहीं । हाथ धूजवा लागौ ।
तिवारे स्वामीजी बोल्या - थांरौ हाथ क्यूं धूजै ? हाथ तो चार प्रकारै धूजै - कै तो कंपण वाय सूं । कै क्रोध रै बस हाथ धूजै । के चरचा मै हारघां हाथ धू । कै मैथुन रे वशीभूत ।
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जद क्रोध रै बस बोल्यो -साळा रौ माथौ छेदीयै ।
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जद स्वामीजी बोल्या - म्हारे जगत् मै स्त्रियां ते मा बहिन समान है । अथांरे घर में ई कोई स्त्री हुवै ते म्हारै बहिन । इण लेखे साळो कह्यौ हुवै त जाण्या । अने घर मै स्त्री नीं हुवै नै मोनै साळौ कहो तो झूठ लागे । अनै साधपण लीयो जद छ काय हणवा रा त्याग कीया सो मोनै साध तौ न सरधौ पण काय मै तो छू ? 'माथौ छेदियै कह्यौ' ते मोनें हणवा रौ कांइ आगार राख्यो । इम सुण घणौ कष्ट हुवौ ।
पछै मोतीरामजी चोधरी कह्यौ - उठो परहा, म्हांनै लजावो । औ तौ खिम्यावंत साधू छै अने थें अरल-बरल बोली । इम कही हाथ पकड़ उठाय ले
गयो ।
* फेर चरचा न कीधी
पछे स्वामीजी नै खंतीविजय पींपार आया जब लोकां जाण्यौ अबै चरचा हुसी । स्वामीजी गोचरी जायै जठैरां श्रावक कहै - पूजजी कह्यौ है - खंतिविजय सूं चरचा कर कष्ट करो | जद स्वामीजी बोल्या - उवै करसी तौ चरचा करवारा भाव छै । पछै सरूपजी मूंहतो खंतिविजय नै जाय कह्यो - भीखणजी कहै सो चरचा करो । x x पिण खंतिविजय तौ फेर स्वामीजी सूं चरचा करी नहीं । स्वामीजी मासखमण रही विहार कीधौ । विहार करतां खतिविजय रे उपाश्रय कनै उभा रह्या तौ पिण खंतिविजय चरचा न कीधी ।
गुळ ₹ बदळे अमल
फेर एकदा पाली में खंतिविजय सूं चरचा हुई । मिश्री रै बदळ लूंग
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