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भिक्ख दृष्टांत कस्तूजी रौ पिता जगू गांधी, तिणरै चरचा करतां श्रद्धा बैठी। पछै भेखधारी जगू गांधी ने कह्यौ-भीखणजी री श्रद्धा खोटी। किण ही श्रावक नै वासती दीधा मै ई पाप कहै, किण ही गृहस्थ री वासती चोर ले गयौ तिण मै ई पाप कहै । इम चोर नै श्रावक सरीखौ गिण ।
जद जगू गांधी स्वामीजी नै ए बात पूछी-ए न्याय किम ?
जद स्वामीजी कह्यौ---उणांने पूछणौ-थारी पछेवड़ी एक तौ चोर ने ले गयौ, एक थे श्रावक नै दीधी, थांनै किण बात रौ प्राछित्त आवै ? जो उवे चोर ले गयौ तिणरौ प्राछित्त न कहै अनै श्रावक नै पछवड़ी दीधी रो प्राछित कहै तौ उणारे लेखै इज देणौ खोटौ ठहर्यो। पछै जगू गांधी उणांनै छोडने स्वामीजी नै गुरु किया।
१७. दोरौ घणो लागी संवत् अठारे पैंतालीसे पीपार चौमासै घणां लोक समज्या । जगू गांधी पिण समज्यौ, जिणरौ भेषधाऱ्यारा श्रावका नै दोरौ घणौ लागौ । जब लोक कहै-भीखणजी जगूजी समजतां बीजा ने इ दोरौ लागौ पिण खेतसीजी लूणावत नै तो दौहरो घणों इज लागौ । सोच घणौ करै ।
जद स्वामीजी कह्यौ-परदेश मै चल्यां री संभळावणी आयां सोच तौ घणा इ करै, पिण लांबी कांचली तो एक जणी इज पैहरै। तिम खेतसीजी पिण जाणवौ।
१८. रात छोटी ने मोटी तिण हिज चौमासै वखाण सुणने लोक राजी घणा हुवै। कोई धेषी कहै-रात्रि घणी आई सवा पौहर, दौढ पौहर।
- जब स्वामीजी कहै-दुःख री रात्रि मोटी लखावै। विहावादिक सुख री रात्रि छोटी लखावै अनै समी सांझ मनुष मंआं ते दुख री रात्रि घणी मोटी लखावै । ज्यूं वखाण न गमैं ज्यांनै रात्रि घणी मोटो लखावै ।
१९. झालर विवाह रो के मूंआ री तिण हि चौमासै केइ वखाण तौ न सुणे नै अळगा बैठा निद्या करै। जद किण ही कह्यौ-भीखणजी ! थे तो वखांण देवौ नै ए निंद्या करै। ___ जद स्वामीजी कह्यौ-श्वान रौ स्वभाव झालर वाज्या रोवण कौ, पिण यूं न समझे या झालर विहाव री छै के मूंआ री छै । ज्यू ऐ यूं न जाणे
औ वखांण मै ज्ञान री बारता वचै, तिणसूं राजी होणौ जठै इ रह्यौ अपूठी निद्या करै । यार निंद्या रौ स्वभाव छ, तिणसू ऊधी सूझै ।