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दृष्टांत : १४-१६
___३०१ १४. नव तत्व की पहचान के बिना सम्यक्त्व कसे आए ? । दिल्ली की तरफ के वेषधारियों को स्वामीजी के श्रावकों ने फिर प्रश्न पूछानव पदार्थ में जीव कितने और अजीव कितने ?
तब वह वेषधारी बोला - पांच जीव और अजीव कहूं तो श्रद्धा भीखणजी की। चार जीव और पांच अजीव कहूं तो श्रद्धा रुघनाथजी की।
एक जीव और आठ अजीव कहूं तो श्रद्धा बगतरामजी की।
एक जीव, एक अजीव, सात जीव अजीव की पर्याय कहूं तो श्रद्धा अमरसिंहजी की।
आठ जीव और एक अजीव कहूं तो श्रद्धा खींवसिंहजी की।
सात नय, चार निक्षेप की अपेक्षा से देवगुरु के प्रसाद से सूत्र की युक्ति लगाकर कहूं तो एक जीव, एक अजीव और सात जीव, अजीव की पर्याय । इस प्रकार नव तत्त्व की पहचान नहीं। मन में जंचे वैसे प्ररूपणा करते हैं, उन्हें सम्यक्त्व
कैसे आए।
१५. ऐसे मनुष्य विरले हैं। लाटोती में खतरगच्छ के श्री पूज्य जिनचंद सूरि आए। उपाश्रय में बहुत लोगों की उपस्थिति में व्याख्यान देते समय आश्रव का प्रसंग आया। तब बोले -आश्रव अजीव है।
तब चैनजी श्रीमाल स्वामीजी का श्रावक बोला ---श्रीजी महाराज! आश्रव जीव है । तब श्री पूज्यजी ने कहा--- आश्रव अजीव है ।
तब चैनजी ने कहा - आश्रव जीव है। तब पूज्यजी बोले तेरी धारणा गलत है। तब चैनजी बोला आपकी धारणा ही गलत है।
श्री पूज्यजी यह चर्चा हम बाद में करेंगे। व्याख्यान समाप्त होने पर लोग अपने घर गए। श्री पूज्यजी ने चर्चावादी सिद्धांतों की जानकारी रखने वाले यतियों को बुलाया। कहा -सूत्रों को देखो, आंधव जीव है या अजीव ? यह निर्णय करो।
तब चर्चावादियों ने निर्णय कर कहा सूत्र के अनुसार तो आश्रव जीव हैं ।
तब श्री पूज्यजी ने चैनजी को बुलाया । बोले --आश्रव जीव है। मैंने अजीव कहा, इसलिए 'मिच्छामि दुक्कडं'। तुम्हारे से खमतखामणा है। अभी तो कह रहा हूं। क्षमापना (खमतखामणा) तो कल परिषद् में होगी।
दूसरे दिन प्रभात के व्याख्यान में भरी परिषद् में श्री पूज्यजी बोले --चैनजी ! मैंने कल आश्रव को अजीव कहा और तूने जीव कहा, तू सच्चा है, मैं झूठा, इसलिए मेरे 'मिच्छामि दुक्कंड' है । तेरे से खमतखामणा है। इस प्रकार अहं छोड़ने वाले मनुष्य विरले हैं।
१६. जोव का अजीव हो गया खतरगच्छ के श्री पूज्य रंगविजयजी और जिनचंद सूरी किशनगढ़ में थे।