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________________ दुष्टांत : ३२ २९५ तब हेमजी स्वामी बोले- कलाल के पानी का त्याग किया, यह अच्छा काम किया । वे त्याग भंग क्यों करवाते हो ? ३२. ऐसी चर्चा करते तो कैसे लगते ? सरवार गांव के बाहर नानगजी का (शिष्य) हीरालाल मिला। उसने पूछा - नव पदार्थ में अस्ति भाव कितने ? नास्ति भाव कितने ? अस्ति नास्ति भाव कितने ? तब हेमजी स्वामी बोले इस प्रश्न का मैं उत्तर देता हूं। अगर तुम कहोगे कि इसका उत्तर सही नहीं आया तो उसका आगमिक प्रमाण बतलाना पड़ेगा । तब हीरालाल बोला- 'साधु को किवाड़ बन्द करने नहीं ।' आदि अनेक बोल तुम कहते हो, क्या वे सब सूत्र में लिखे हैं ? तत्र हेमजी स्वामी बोले -- हम तो किंवाड़ बन्द करना निषिद्ध करते हैं, उसका आगमिक प्रमाण बतलाते हैं । तब हीरालाल बोला- तुम आगमिक प्रमाण क्या बतलाओगे ? गत काल में अनंत साधुओं ने किवाड़ बन्द किया, वर्तमान काल में अनंत साधु किंवाड़ बन्द करते हैं, भविष्य में भी अनंत साधु किवाड़ बंद करेंगे । तब हेमजी स्वामी बोले गत काल में अनंत साधुओं ने किंवाड़ बन्द किया कहते हो तो तुम्हारे जैसे अनन्त साधुओं ने बन्द किया । भविष्य में भी तुम्हारे जैसे अनंत बन्द करेंगे पर तुमने कहा- वर्तमान काल में अनंत बंद करते हैं, यह कैसे ? वर्तमान काल में अनंत मनुष्य भी नहीं, तो अनंत साधु वर्तमान काल में किंवाड़ कैसे बंद करते हैं ? इस बात का 'मिच्छामि दुक्कड' लो । तब वह बोला- 'मिच्छामि दुक्कड' तुम्हें आता है, इसलिए तुम लो I हेमजी स्वामी -'मिच्छामि दुक्कडं' आता तो तुम्हें है और नाम लेते हो मेराउल्टा चोर कोटवाल को दण्डित करे । तब हीरालाल उलटा-सीधा बोलकर चला गया । स्थानक में आकर वोला मैं तेरापंथियों से चर्चा करने के लिए बाजार में जाता हूं । तब मांडलगढ़ वाला सदारामजी मुंहता बोला- तुम चर्चा करने के लिए मत जाओ। बार-बार कहा पर माना नहीं। तब सदारामजी बोले- उनसे चर्चा करने जा रहे हो तो पहले मेरे प्रश्नों के तो उत्तर दे दो। बताओ - धर्म भगवान् की आज्ञा में है या आज्ञा बाहर ? तब हीरालाल बोला- आज्ञा में । तब सदारामजी ने कहा- देखो बात में मजबूत रहना, ऐसा कहकर भोजन करने के लिए घर चले गये । पीछे हीरालाल आकर बोला- मुंहताजी धर्म तो आज्ञा में भी है और आज्ञा बाहर भी है। तब सदारामजी ने कहा-तेरापंथियों से ऐसी चर्चा करते तो कैसे लगते ? ऐसा कहकर निरुत्तर कर दिया ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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