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इप्टात : २८-३०
२९३ २८. दोनों में एक झूठ भारमलजी स्वामी और खेतसीजी स्वामी पाली के जोधपुरिया बास में गोचरी पधारे । टीकमजी भी वहां आये । लोगों ने कहा - चर्चा करो।
तब भारमलजी स्वामी ने टीकमजी से कहा-नित्यपिंड लेना आगम में तो वर्जित है पर तुम लेते हो, उसमें दोष समझते हो या नहीं ?
तब टीकमजी बोले-हम तो परिष्ठापन करने जैसा धोवन नित्य लेते हैं, उसमें दोष नहीं।
तब भारमलजी स्वामी ने कहा- धोवन का नाम क्यों लेते हो ? पानी भी तो नित्य लेते हो।
तब टीकमजी बोले-हम पानी नहीं लेते हैं। तब भारमलजी स्वामी बोले तुम पानी लेते हो । ऐसे बार-बार कहा ।
तब लोग बोले .. ये तो कहते हैं हम नित्य (एक घर से) पानी नहीं लेते। तुम कहते हो ये लेते हैं, तो दोनों में एक को झूठ लगता है।
तब भारमलजी स्वामी बोले- ये नित्य पिंड गर्म पानी एक घर का लेते हैं, वह भी कलाल के घर का। तब टीकमजी मौन हो गए। फिर भारमलजी बोले-ये आहार भी एक घर का नित्य लेते हैं। वह कैसे ? आज आहार लिया और दूसरे दिन विहार करते समय फिर उस घर का लेते हैं। इस हिसाब से आहार भी नित्यपिंड लेते हैं। तब टीकमजी सही उत्तर नहीं दे सके। उसके बाद स्थान पर आकर भीखणजी स्वामी को सारे समाचार सुनाए, यह चर्चा भी सं० १८५५ के वर्ष की है।
२१. दुमना सेवक दुश्मन जैसा सं० १८७७ आमेट में कई भाई शंकाशील थे वे गृहस्थ श्रावक-श्राविकाओं के पास अवर्णवाद बोलते रहते हैं, यह बात भारमलजी स्वामी ने केलवे में सुनी तब हेमजी स्वामी से कहा हेमजी ! और अनेक गांवों के लोग तो दर्शन करने आए पर आमेट वाले नहीं आए । यह बात बार-बार पूछी। तब हेमजी स्वामी ने पूछाआपने आमेट वालों के लिए बार-बार कैसे पूछा ? तब भारमलजी स्वामी बोलेवहां वे दो चार व्यक्ति शंकालु से हैं उन्हें छोड़ दें तथा मना कर दे और कह दें कि तम हमारे श्रावक मत कहलाओ। अलग करने के बाद लोग उनकी बात नहीं मानेंगे।
इन्हीं दिनों दीपजी नामक एक साधु को गण से अलग किया था। भारमलजी स्वामी बोले- दीपजी को छोड़ा वैसे उनको भी छोड़ दें, जिससे दूसरों के शंका न पड़े। ऐसी थी महापुरुषों की बुद्धि । 'दुमनो चाकर दुश्मण सरीखो' दुमना सेवक दुश्मन जैसा होता है-ऐसी लोकोक्ति है इस कारण से उन्हें छोड़ने का निश्चय किया ।
३०. भरत क्षेत्र में साधुओं का विरह एक सम्प्रदाय के साधु तथा उनके श्रावक बोले-भारमलजी कहते हैं-भरत