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दृष्टांत : १८-२०
१८. क्या समझते हो? जोधपुर में किसी ने पूछा--विजयसिंहजी (नरेश) ने अमारी पडह पशु वध न करने की घोषणा करवाई । उसका उन्हें क्या हुआ ?
तब मुनि हेम बोले- ये मानसिंहजी जलंधरनाथजी की पूजा करते हैं, उसको तुम क्या समझते हो ? (श्रद्धते हो) तब वापस प्रत्युत्तर नहीं दे सके ।
१६. अव्रत दायीं तरफ या बायीं तरफ ? एक इतर सम्प्रदाय के साधु ने सिरियारी में पूछा -भीखणजी ने जोड़ की है__ "साध नै श्रावक रतनां री माला, एक मोटी दूजी नान्ही रे।
गुण गूंज्या च्यारूं तीरथ ना, अवत रह गई कानी रे ॥ चतुर० (साधुपन और श्रावकपन रत्नों की माला है, एक बड़ी और दूसरी छोटी । वह कथन चार तीर्थ के गुण ग्रंथन की दृष्टि से हैं। इससे अव्रत एक ओर रह गई।) तो यह अव्रत बायीं ओर रही या दायीं ओर ?
तब मुनि हेमजी स्वामी ने कहा-जीव के असंख्यात प्रदेशों में अव्रत है और असंख्यात प्रदेशों में ही व्रत है। गुण पृथक्-पृथक है। व्रत से अव्रत अलग है, इस अपेक्षा से अलग कही है।
२०. तीन मिच्छामि दुक्कडं सं० १८७५ पाली में गोचरी जाते समय हेमजी स्वामी को संवेगी साधु रूपविजय ने उपाश्रय की खिड़की से आवाज दी-हेम ऋषि ! आओ, हेम ऋषि ! आओ, चर्चा करें । मुनि हेम आकर बैठ गए । संवेगी सम्प्रदाय के लोग काफी इकट्ठे हुए।
रूपविजय बोले-मुंह किसलिए बांधा है ? हेमजी स्वामी दया के लिए। रूपविजय--दया किसकी ? हेमजी स्वामी दया वायुकाय की। रूपविजय-वायुकाय के जीवों के शरीर चार स्पर्शी है या आठ स्पर्शी ? हेमजी स्वामी-आठ स्पर्शी । रूपविजय-भाषा के पुद्गल चार स्पर्शी है या आठ स्पर्शी ? हेमजी स्वामी-भाषा के पुद्गल चार स्पर्शी।
रूपविजय --चार स्पर्शी से आठ स्पर्शी की हिंसा कैसे ? पुनी ऊपर पड़ने से पाडी (भैंस की बछड़ी) मरती है ?
हेमजी स्वामी-पूनी पड़ने से पाडी नहीं मरती पर सौ मण की शिला पड़ने से तो पाडी मरती है, वैसे ही भाषा बोलते समय आठ स्पर्शी अचित वायु पैदा होती है, उस आठ स्पर्शी नयी वायु से वायुकाय के जीव मरते हैं । ऐसा कहने पर रूपविजय को उत्तर नहीं आया। तब फिर रूपविजय बोला-ऐसे जीव मरे तब तो तीन स्थानों को बांधो । १. नीचे का स्थान २. मुंह और ३. नाक।
मुनि हेम-ठीक है । छींक आए तब मुख पर हाथ देना बतलाया है।
'छीए, जंभाइए, वायनिसग्गेणं' यह पाठ 'तस्सउत्तरी' (आवश्यक) सूत्र में कहा है या नहीं ?
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