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________________ २५० दृष्टीत किसतरे सूं । म्हें तो घर में ई घणा ई सुसला मार्या था जांण्यो एक सुसली aad मार्यो । एक तेलौ प्राछित रौ उरही लेसूं । पिण इणनै तौ छोडूं नहीं । पछै गुरु घणौ कयौ मार मती । जद कमडरी दोरी सूं दोनूं हाथ पूठे बांध गांम रै गोरवे आणने छोड़ दीयौ । ८. भीखणजी रौ साध तौ एकलो नहीं फिर रूपचंद छोटौ । स्वामीजी रा दर्शण करवा आंवतो मार्ग मै ताराचंदजी स्वामी मिल्या । त्यां पूछ्यौ — थे किणरा साध ? जद रूपचंद बोल्यो - हूं भीखणजी रौज । जद ताराचंदजी बोल्या - भीखणजी रौ साध तो एकलौ नहीं फिरें । जद रूपजी बोल्यो - हूं टोळा बारै छू । मो में साधपणी कोई नहीं, मौनें वंदना करौ मती । इम कहिनैं आघौ चाल्यो । मारग मैं चोर उठ्यौ । तरवार काढ कहै - कपड़ा न्हांख दे | जद रूपजी पात्रा दिखाया । जब चोर बोल्योकमfड खोल | जद रूपजी त्रिसूल चढाय मूंछां रौ केश तोड़ने बोल्यो - इण पीपल पेड़ आगे जावा देऊं तौ असल गुरु नों मूंड्यौ ई नहीं । जद चोर न्हास गयौ । पछे रूपजी बड़ी रावळिया जाय सामी भीखणजी रा दर्शण कीया पछ रूपजी इद्रगढ़ गयौ । तेहनौ विस्तार तौ घणौ है ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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