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दृष्टांत
हेमजी स्वामी महढा सूं एती वारता लिखाई संवत् १९०३ चौमासा
१. वचन तो तीखौ पाल्यौ सोजत मैं अणंदे पटवै कयौ हुँतो-'इण भीखणीया रौ महढौ न देखू'। इम बार-बार क्रोध रै बस बोल्यौ। पाप रा उदा थी सात मै दिन आंधौ होय गयौ । लोक बोल्या-वचन तौ अणंदेजी तीखौ पाल्यौ। आंधा होय गया सो भीखणजी रौ मूंहढी कदे ई देखै नहीं। लोक मै घणी निंद्या पायो ।
२. बचावो तो थे ई कोई नहीं पीपार मै मौजीरामजी बौहरा नी बेटी रै कारण पड़यौ । जद उरजोजी साध थानक मै था त्यानै बोलावा आयौ कहै-घरे पधारजै।
जद उरजोजी बोल्या-कांई काम ?
जद मौजीरामजी बोल्या-- डाबरी रै असाता घणी । तलफा तौड़े है, सो काई जंत्र मंत्र कलवाणी करो, ज्यूं छोहरी रै साता हुवै ।
जद उरजोजी बोल्या-म्हारै साधां रै करणी कठे है।
जद मौजीरामजी बोल्या-थे कहौ छौ नी म्हे जीव बचावां छां नै भीखणजी जीव बचावै नहीं। यूं ही कहौ-'जीव बचावां-जीव बचावां, पिण बचावो तो थे ई कोई नहीं।
३. एक आळ यो फेर चाहिजे जोधपुर मै जैमलजी रैथानक हुवै जद रायचंदजी बोल्यौ-एक आळ्यौ तो अठै चाहिजै । सोभाचंद फोफलियौ बोल्यो- अठै आळ्यौ क्यूं चाहिजे ?
जद रायचन्दजी बोल्या-अठ पोथी पाना पड़या रहै। जद सोभाचन्दजी बोल्या-एक आळ्यौ इण जागा फेर चाहीजै । जद रायचन्दजी बोल्यौ-अठ आळ्यौ क्यूं चाहीजै ?
जद सोभाचन्द बोल्यौ-अठ आपरा महाव्रत पड़या रहसी । गांम-गाँम कठे लीयां फिरौ।