________________
भिक्खु दृष्टोत २६१. घो सहित घाट वापस ले ली संवत् १८५५ आषाढ़ मास की घटना है। स्वामीजी बहुत साधुओं और साध्वियों के साथ विराज रहे थे । साध्वी अजबूजी गोचरी के लिए गई। किसी ने घी का दान दिया। दूसरे घर में एक बहिन ने 'घाट' (दलिया) का दान देकर पूछा- 'तुम किस टोले की साध्वी हो?"
तब साध्वी अजबूजी ने कहा- "हम भीखणजी स्वामी के टोले की हैं।"
तब वह बहिन देती हुई बोली-“पिछली बार भी तुम मेरे घर से रोटी ले गई थी। (आज फिर आ गई) मेरी 'घाट' मुझे वापस दे दो।" यह कहकर वह घाट वापस लेने लगी, तब तक एक व्रजवासिनी ने उसे बरजा- "हे कीकी ! 'अतीत' (साधु) को दिया हुआ दान वापस मत ले।
तब वह बोली-कुत्तों को खिला दूंगी, पर इनके पास से तो वापस ले लूंगी। यह कहकर उसने जबरदस्ती वह घाट घी-सहित वापस ले ली।
अजबूजी ने स्वामीजी के पास आकर यह सारी घटना सुनाई।
तब स्वामीजी बहुत विमर्श कर बोले- "यह कलिकाल है। इसमें ऐसा हो सकता है। कुछ लोग दान नहीं देते, कुछ लोग देने से इन्कार कर देते हैं और कुछ लोग जानबूझ कर अशुद्ध (जिसके हाथ से भिक्षा ग्राह्य नहीं होता वैसा) हो जाते हैं। परन्तु दान देने के बाद वापस लेने की बात पहले नहीं सुनी। यह तो कोई नई बात हुई
व्रजवासिनी ने इस बात को गांव में फैला दिया।
उस (कीकी) के पति को लोग कहने लगे-“दुकान पर तो तुम कमाते हो, और घर में तुम्हारी स्त्री कमा रही है।" यह सुनकर वह भी मन में लज्जित होता है । कुछ दिनों बाद रक्षा-पूर्णिमा के दिन अकस्मात् उसका पुत्र चल बसा। और कुछ दिनों बाद 'कीकी' का पति भी मर गया। तब शोभजी श्रावक ने एक तुक्का रचा
"तू बादरशाह की पुत्री है । कीकी तेरा नाम है। तूने घी सहित घाट वापस ले ली, पात्र को खाली कर दिया।"
_ पछतावा कुछ समय बाद उसी बहिन (कीको) के घर साधु गोघरी गए। वह साधुओं को दान देने लगी । साधुषों ने पूछा-"तुम्हारा नाम क्या है ?"
तब वह बोली-"मैं वही पापिनी कीकी हूं, जिसने साध्वियों के पात्र से घाट वापस ली थी। कोई तो पाप का फल परभव में देखता है। मैंने तो वह इसी जन्म में देख लिया।" यह कहकर वह पछताने लगी।
२९२. सब घरों में गोचरी क्यों नहीं जाते ? संवत् १८५६ नाथद्वारा की घटना है। हेमजी स्वामी ने स्वामीजी से कहाअपन श्रावकों के घर गोचरी के लिए जाते हैं। अनुक्रम से जो घर आते हैं, वहां गोचरी के लिए नहीं जाते (सामुदायिक गोचरी नहीं करते) इसका क्या कारण है ?
तब स्वामीजी बोले-"यहां लोगों में द्वेष भावना बहुत है। इसलिए क्रम वार