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दृष्टांत : २६२-२६५
२२३ तब जैचन्दजी बोला- "मैं तो मार्ग भूल गया।" तब स्वामीजी ने कहा- "गृहस्थ के भरोसे नहीं रहना चाहिए।"
.. २६२. ऐसे होते हैं बुद्धिहीन ! दूसरा कोई उत्तर देता है, उसे नहीं समझ पाता और स्वयं क्या कह रहा है, वह भी नहीं जानता, ऐसे व्यक्ति के विषय में स्वामीजी ने दृष्टांत दिया - "एक सहेली बोली-'मेरा पति ऐसे अक्षर लिखता है, जिन्हें कोई दूसरा पढ नहीं सकता।"
___'तब दूसरी बोली-मेरा पति ऐसा लिखता है, जो स्वयं लिखा हुमा स्वयं ही नहीं पढ़ सकता।' ___"जगत् में ऐसे बुद्धिहीन होते हैं, ऐसे ही कुछ लोग होते हैं--स्वयं की भाषा से स्वयं अनभिज्ञ । ऐसे लोग केवलीभाषित धर्म को कैसे पहिचान सकते हैं ?"
___२६३. कोई पत्थर डाल दे तो? एक साधु गोचरी से पाया और जितना आहार ममाया था उससे अधिक ले
आया।
तब स्वामीजी ने पूछा-आहार अधिक क्यों लाया ? तब वह बोला -"जबरदस्ती डाल दिया।" तब स्वामीजी बोले-'जबरदस्ती से कोई पत्थर डाल दे, तो लोगे या नहीं ?
२६४. एकेन्द्रिय ने कब कहा? किसी ने कहा- "एकेंद्रिय जीव को मार कर पंचेन्द्रिय का पोषण करने से लाभ होता है।"
तब स्वामीजी बोले-"किसी ने तुम्हारा अंगोछा' छीन कर ब्राह्मण को दे दिया। उसमें लाभ है या नहीं ? अथवा एक आदमी ने किसी के गेहूं के कोठे पर कब्जा कर उसे लुटा दिया, उसमें लाभ होगा या नहीं ?'' .
तब वह बोला--"इसमें तो लाभ नहीं, मालिक के मन के बिना दिया इसलिए।"
तब स्वामीजी बोले- एकेंद्रिय ने कब कहा-'मेरे प्राण लूट कर दूसरों का पोषण करना।' इस न्याय से एकेंद्रिय को मारने वाला उसके प्राणों की चोरी करता है, इसलिए उसमें लाभ नहीं।
२६५. विलाप करने से क्या होगा ? ___ दुःख आने पर लोग विलाप करते हैं, इस विषय पर स्वामीजी ने दृष्टान्त दियाकिसी साहूकार ने गेहूं के कोठे भरे। ऊपर से उन पर ठप्पा मार, लिपाई पुताई कर उन्हें मजबूत बना दिया। उसके एक पड़ोसी ने भी कोठे में धूल, खाद और कचरा डाल, उसके ऊपर ठप्पा मार, लिपाई कर उसे साफ कर दिया। गेहूं के भाव तेज हो गए-- दुगुने हो गए।
साहूकार अपने कोठे को खोल गेहूं बेचने लगा। पड़ोसी ने भी ग्राहकों से गेहूं १. अंग पोंछने का वस्त्र