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दृष्टांत : १७९
१९१ निश्चिन्तता हो गई है । पहले तो हम थे, अब अन्य मतावलंबियों से चर्चा करने के लिए तुम्हारे पास हेमजी है ही। इस चर्चा के बाद हेमजी स्वामी बोले- मैंने ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार किया है इसकी चर्चा लोगों में न करें।
तब स्वामीजी बोले- मैं नहीं करूंगा।
हेमजी स्वामी सिरियारी चले गए और स्वामीजी चेलावास पधारे। वहां स्वामी जी ने वेणीरामजी स्वामी से कहा-हेमजी ने ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार कर लिया, पर उसने कहा है अभी इस बात को लोगों में प्रसिद्ध न किया जाए। हेमजी के ब्रह्मचर्य की बात सुनकर वेणीरामजी स्वामी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने स्वामीजी की बहुत प्रशंसा कीआपने भारी काम किया। उन्होंने कहा - मैंने बहुत प्रयत्न किया था पर कोई सफलता नहीं मिली । आपने अच्छा काम किया और उन्होंने जो ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार किया है उसे प्रगट करना है, छुपाकर नहीं रखना है । आप भले ही मत कहें ।
वेणीरामजी स्वामी ने वह बात प्रसिद्ध कर दी। चेलावास के भाई बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा- हम तो पहले ही जानते थे कि हेमजी दीक्षा लेंगे।
कुआंरे लड़के बहुत हैं स्वामीजी सिरियारी पधारे । हेमजी स्वामी की शोभायात्रा निकाली जा रही थी और उन्हें भोज दिए जा रहे थे । दीक्षा का मुहूर्त निश्चित हुआ~-माघ शुक्ला त्रयोदशी, शनिवार। उनके बड़े बाप के बेटे ने रावले में जाकर शिकायत की। तब ठकुरानी ने अपने कर्मचारियों के साथ स्वामीजी से कहलाया-आप हमारे गांव में न रहें।
तब गांव के पंच इकट्ठे हो, हेमजी स्वामी को साथ ले रावले में गए। ठकुरानी हेमजी स्वामी को कपड़ों और गहनों से अलंकृत देख बोली-मैं तुम्हें इसी वेष में कपड़ों और गहनों सहित ब्याह दूंगी। मेरे पुत्र दौलतसिंह की सौगंध खाकर यह कह रही हूं।
तब हेमजी स्वामी ने ठकुरानी को उत्तर दिया-यदि आप किसी का ब्याह करना चाहती हैं तो गांव में कुआंरे लड़के बहुत हैं। मुझे तो शादी करने का त्याग है यह कह कर वे स्वामीजी के पास आ गए। स्वामीजी के गांव में रहने की स्वीकृति लेकर पंच भी वापस आ गए।
• अब तेरह साधु हो गए हेमजी स्वामी के माघ शुक्ला पूर्णिमा के बाद छह काय के जीवों की हिंसा करने का त्याग किया हुआ था। उनके ज्ञातिजनों ने कहा - फाल्गुन कृष्णा द्वितीया के दिन तुम्हारी बहिन की शादी का मुहूर्त है । उस दिन बहिन को ब्याह कर फिर तुम दीक्षा लेना। हेमजी स्वामी ने उनका कहा मान लिया।
हेमजी स्वामी ने स्वामीजी से आकर पूछा-क्या मैं ऐसा करूं? ... तब स्वामीजी ने उलाहना की भाषा में कहां-हे भोले आदमी ! तू अनर्थ कर रहा है । तुझे एक दिन का भी अतिक्रमण नहीं करना है।
हेमजी स्वामी अपने घर आए। फाल्गुन कृष्णा द्वितीया के दिन बहिन की शादी के बाद दीक्षा लेना है, ऐसा पत्र जो उनसे लिखवाया गया था, उसे फाड़ डाला।