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दृष्टांत : १३२-१३५
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करा देता है - अमुक बजाज से खरीदी, अमुक रंगरेज के पास मैंने रंगाई । जो व्यक्ति पगड़ी चुरा कर लाया हो, वह उसका मूल स्रोत नहीं बता पाता । वह थोड़े में अटक जाता है।
इसी प्रकार जो आज्ञा के बाहर धर्म बतलाता है धर्म बतलाता है, वह स्थान-स्थान पर अटक जाता है। जा पाता ।
तथा अव्रत का सेवन कराने पर वह मूल स्रोत तक उसे नहीं ले
१३२. चर्चा घर के मालिक की तरह करो
कोई स्वामीजी के पास चर्चा करने आया । में चर्चा करते हुए वह स्थान-स्थान पर अटकता है, एक चर्चा को छोड़ बीच में ही दूसरी शुरू कर देता है, शुरू कर देता है, किन्तु प्रथम न्यायसंगत चर्चा का निर्वाह नहीं करता ।
दान-दया और व्रत - अव्रत के विषय अट-संट बोलता है । न्याय संगत दूसरी छोड़, बीच में तीसरी
तब स्वामीजी बोले - घर का मालिक फसल को काटता है तो वह व्यवस्थित रूप में क्रमबद्ध काट लेता है। और यदि खेत में चोर घुस जाता है तो वह फसल को अस्तव्यस्त रूप में काटता है-एक पौधा कहीं से तोड़ता है तथा दूसरा पौधा कहीं से तोड़ता है । इसी प्रकार तुम लोग चोर की भांति मत करो। घर मालिक की भांति न्याय की एक चर्चा को पार तक पहुंचा कर फिर दूसरी शुरू करो ।
१३३. वे न्याय के अर्थी नहीं हैं
अन्य संप्रदाय के साधु आचार और सैद्धान्तिक मान्यता की न्यायसंगत चर्चा को छोड़ बीच में जीव बचाने की बात को ला विग्रह खड़ा कर देते हैं ।
जाते समय लाय लगा देता है ।
तब स्वामीजी बोले -- कुटिल चोर चोरी करके लोग लाय को बुझाने में लग जाते हैं और वह माल लेकर चंपत हो जाता है । इसी प्रकार आचार तो शुद्ध पाल नहीं सकते, अतः आचार और सैद्धान्तिक मान्यता की न्यायसंगत चर्चा को छोड़ लोगों को उकसाने वाली बातें करते हैं - ये जीव बचाने में पाप बतलाते हैं ! इन्होंने दान-दया को उठा दिया है ! भगवान् को चूका हुआ बतलाते हैं । इस प्रकार लोगों को उकसाते हैं पर वे न्याय के अर्थी नहीं हैं । १३४. भगवान् का मार्ग स्वामीजी ने कुमार्ग और सुमार्ग पर पाडियों के मार्ग की पहचान कैसे करें ।
राजपथ जैसा है
दृष्टांत दिया - भगवान् के मार्ग और
भगवान् का मार्ग तो राजपथ जैसा है। वह कहीं भी बीच में नहीं रुकता । पाडियों का मार्ग पशुओं की पगडंडी जैसा है-थोड़ी दूर पगडंडी दिखाई देती है और आगे झाडी-काड आ जाते हैं । इसी प्रकार वे थोड़ा-सा दान-शील आदि बतलाते हैं, फिर हिंसा में धर्म बतला देते हैं ।
१३५. जो वर्तमान में होता है वही सत्य है
कुछ पाषंडी ऐसा कहते हैं भीखणजी की ऐसी मान्यता है कि किसी ने मरते बकरे को बचाया और वह बाद में अनेक प्रकार की हिंसा करेगा, उसकी अनुमोदना