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दृष्टांत : ९१
१५७ . "वंदना करते हैं।" "सर्वधातु की प्रतिमा हो ती ?" "वंदना करते हैं।" "पाषाण की प्रतिमा हो तो?" "वंदना करते हैं।" "गोबर की प्रतिमा हो, तो वंदना करते हैं या नहीं ?" तब खंतिविजयजी क्रोध में आकर बोले-"तुमसे निक्षेपों की चर्चा नहीं करेंगे।
"तुम तो प्रभु की आशातना करते हो, वह हमें अच्छी नहीं लगती" यह कह कर वह वहां से चले गए। स्वामीजी भी अपने स्थान पर आ गए।
० हाथ क्यों कांप रहा है ? फिर खंतिविजयजी से लोगों ने कहा - "आप भीखणजी से चर्चा करें।" इस प्रकार लोगों द्वारा बार-बार कहने पर खंतिविजयजी बहुत लोगों के साथ बाजार में आए और स्वामीजी जहां ठहरे हुए थे, वहां से दस दुकानों की दूरी पर बैठ गए।
फिर लोगों ने स्वामीजी से कहा- "खंतिविजयजी चर्चा करने आये हैं सो आप वहां चलें।"
___ तब स्वामीजी बोले-"मेरा तो यहीं रहने का भाव है । खंतिविजयजी इतनी दूर आए हैं । यदि चर्चा करने का मन होगा, तो इतनी-सी दूर और आ जाएंगे।"
तब लोगों ने खंतिविजयजी से जाकर कहा-"आप चलें।" इस प्रकार उन पर दबाब डाल एक दुकान के अन्तर पर ला बिठा दिया। वे बोले -"यहां से तो एक पग भी आगे नहीं सरकंगा।"
फिर लोगों ने कर स्वामीजी से कहा - "अब तो आप भी पधारें।" तब स्वामी जी और भारीमालजी स्वामी पधारे । अब चर्चा प्रारम्भ हुई।
___ स्वामीजी बोले-"चर्चा सूत्रों से सम्बन्धित करनी है और आचारांग आदि ग्यारह अंगों से सम्बन्धित चर्चा करनी है। आचारांग सम्बन्धी चर्चा करने लगे। तब स्वामीजी बोले----"आचारांग सूत्र में ऐसा कहा है
“धर्म के निमित्त जीवों को मारने में दोष नहीं है, यह अनार्य वचन है।" यह पाठ स्वामीजी ने दिखाया।
तब खंतिविजयजी बोले-“यह पाठ अशुद्ध है । रे शिष्य ! अपनी प्रति ला।"
उस . पोथी मंगा कर देखी तो उसमें भी वैसा ही पाठ निकला । तब स्वामीजी ने कहा “पढ़ो । तब उन्होंने परिषद् के बीच पढ़ने से आनाकानी की। उनके हाथ कांपने
लगे।"
____ तब स्वामीजी बोले-"तुम्हारा हाथ क्यों कांप रहा है ?" चार कारणों से हाथ कांपते हैं
एक तो कंपन वायु से हाथ कांपते हैं, अथवा क्रोध के कारण हाथ कांपते हैं, अथवा चर्चा में हार जाने पर हाथ कांपते हैं,