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भिक्षु दृष्टांत ९०. सम्यकदृष्टि को पाप नहीं लगता? पुर की घटना है । ऋषि गुलावजी दो साधुओं सहित स्वामीजी के पास चर्चा करने आए। वेषधारी साधुओं के अनेक श्रावक उनके साथ थे। वे श्रावक अंट-संट बोलने लगे।
तव स्वामीजी ने कहा- "होली में किसी को राव बना.तमाशबीन 'गेरिआ' (होली खेलने वाले) उसके साथ होते हैं। उसी प्रकार ऋषि गुलाबजी को राव बना तुम लोग गेरिआ बने हो, ऐसा लगता है । ज्ञान की बात तो कुछ दिखाई नहीं देती।"
फिर स्वामीजी ने ऋषि गुलाबजी से पूछा--"शीतलजी के सम्प्रदाय के साधुओं को तुम साधु मानते हो या असाधु ?"
तब वे बोले--"असाधु मानता हूं।" "शीतलजी के साधु अनशन करते हैं, उन्हें तुम क्या मानते हो ?" तब वे बोले---"अकाम-मरण ।" "रुघनाथजी, जयमलजी आदि सम्प्रदायों के साधुओं को क्या मानते हो?" तब वे बोले- "असाधु मानता हूं।" "उनके साधु अनशन करते हों, उसे क्या मानते हो ?" "अकाममरण ।" "फिर वे श्रावक बोले-आप भीखणजी को क्या मानते हैं ?"
उनके उत्तर देने से पहले ही स्वामीजी बोले-"हमने इन्हें पहले कभी देखा ही नहीं। हमारी और इनकी मान्यताएं तथा आचार परम्पराएं मिल जाएं, तो हमें इनके साथ संघीय सम्बन्ध स्थापित करने में कोई संकोच नहीं होगा।" उस समय उनमें से कुछ श्रावक तो वहां से चले गए। ____ अब ऋषि गुलाबजी से स्वामीजी ने पूछा- “सम्यक्-दृष्टि के पाप का बन्ध होता है या नहीं?"
तब उन्होंने उत्तर दिया-"नहीं होता।" तब स्वामीजी ने पूछा - "यदि सम्यग्दृष्टि स्त्री का सेवन करे तो ?" तब वह बोला-"पाप नहीं लगता।" "तुम अपने आपको सम्यक्ष्टि मानते हो; यदि तुम स्त्री का सेवन करो ?'
तब बोले--"पाप तो नहीं लगता, पर साधु के वेष में यह बात शोभा नहीं देती।"
___ तब स्वामीजी बोले-"सिर पर वस्त्र लपेट कर यदि स्त्री का सेवन करो तो?" इत्यादि अनेक प्रश्न पूछे।
तब वे उत्तर देने में असमर्थ रहे । बहुत उलझ गए। तब क्रोध में आकर बोले'आप हमसे चर्चा कर रहे हैं; यदि गोगुन्दा के भाइयों से चर्चा करें, तो आपको पता चले । गोगुन्दा के भाई 'तुंगिया नगरी के श्रावक' हैं। वहां के श्रावक 'अकबरी मोहर' हैं।" १. मोक्ष के उद्देश्य-रहित मरण ।