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भिक्खु दुष्टांत
नों की खेती की । ५०० मन चने पैदा हुए। पांचों जनों ने विचार किया - " घर में धन तो बहुत है । इन चनों का दान कर धर्म कमाएं ।"
एक व्यक्ति ने १०० मन चने भिखारियों को लूटा दिया ।
दूसरे ने १०० मन चनों के भूंगड़े भूनाए ।
तीसरे व्यक्ति ने १०० मन चनों की 'घूघरी' करके खिलाई ।
चौथे व्यक्ति ने १०० मन चनों की रोटियां कराई और साथ में कढी बना कर
खिलाई ।
पांचवें व्यक्ति ने १०० मन चनों का विसर्जन कर उन्हें छूने का भी त्याग कर
दिया ।
जो सावद्य दान में पुण्य-धर्म बतलाते हैं उन्हें पूछना चाहिए कि इनमें अधिक धर्म किसे हुआ
?
४५. अधिक धर्म किते (२)
एक बूढ़ा आदमी भीख
स्वामीजी ने दान के विषय में एक और दृष्टांत दिया। मांगता हुआ घूम रहा था। किसी ने अनुकंपा कर उसे सेर चने दिए। तब उस बूढ़े ने किसी से कहा - " एक आदमी ने तो मुझे सेर चने दिए पर मेरे दांत नहीं है, इसलिए तुम इन्हें पीस के आटा बना दो।" तब दूसरी बहिन ने अनुकपा कर चनों को पीस आटा बना दिया ।
उसे आगे जा किसी से कहा- मुझे एक धर्मात्मा ने तो सेर चने दिए। दूसरी बहन ने उन्हें पीस आटा बना दिया । तुम मुझे उस आटे की रोटियां बना दो। तब तीसरी बहिन ने उस सेर आटे में नमक और पानी मिला उसकी रोटियां बना दीं। वह रोटी खाकर तृप्त हो गया ।
कुछ देर बाद उसे बहुत प्यास लगी ।
तब वह आगे जाकर बोला--" है रे कोई धर्मात्मा, जो मुझे पानी पिलाए ।" तब चौथी बहिन ने अनुकंपा कर सजीव जल पिलाया ।
एक व्यक्ति ने सेर चने दिए, दूसरे ने पीस के आटा बना दिया, तीसरे ने उसकी रोटियाँ बना दीं, चौथे ने उसे पानी पिलाया। इन चारों में अधिक धर्म किसे हुआ ?
४६. ऐसा पौत्र - शिष्य नहीं चाहिए
टीकमजी का शिष्य जालोर वासी कचरोजी सिरियारी में स्वामीजी के पास आया और बोला - "भीखणजी कहां हैं ? भीखणजी कहां हैं ?"
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तब स्वामीजी बोले -" भीखण मेरा ही नाम है ।'
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तब वह बोला - " मेरे मन में आपको देखने की बड़ी उत्कंठा थी ।
तब स्वामीजी बोले -"लो देख लो ।"
फिर कचरोजी बोला - "मुझे आप कोई प्रश्न पूछें ?"
स्वामीजी बोले ---"तुम देखने आए हो, फिर तुम्हें क्या प्रश्न पूछें ? " वह बोला -- " कुछ तो पूछो।"
१. 'मेर' जाति की महिलाएं