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भिक्खु दृष्टांत
३३. समझाने की कला
माधोपुर में अनेक लोग आचार्य के अनुयायी बने । गोचरी जाने पर वे कहतेआगे पधारो | बहनें यह नहीं चाहतीं । तब भाइयों ने बहिनों से कहा इस शरीर में सबसे ऊंचा सिर होता है और सबसे नीचे पैर होते हैं । इनके पैरों में हम शिर झुका हैं, फिर चौके की क्या बात ? ऐसा कह, उन्हें समझा, स्वामीजी को भीतर ले जाकर आहार का दान दिया ।
लगता है कि यह कला भी भाइयों को स्वामीजी ने सिखलाई थी ।
३४. जैसा दिया जाता है वैसा पाता है।
'काफरला' गांव में साधु गोचरी गए । एक जाटनी के घर में धोवन पानी था, पर वह साधुओं को दे नहीं रही थी । उसने कहा--- जैसा दिया जाता है, वैसा मिलता है । मैं धोवन पानी नहीं पी सकती । ( इसलिए इसे नहीं दे सकती । ) साधुओं ने आकर स्वामीजी से कहा- एक जाटनी के घर पर धोवन पानी बहुत है। किन्तु वह दे नहीं रही है तब स्वामीजी वहां पधारे और बहिन से कहा:-" धोवन का पानी दो ।"
तब उस बहिन ने कहा- "जैसा दिया जाता है वैसा मिलता है और मुझसे धोवन पानी पीया नहीं जाता।" (इसलिए इसे नहीं दे सकती ।)
तब स्वामीजी ने कहा - "गाय को घास डाली जाती है और वह दूध देती है । ऐसे ही साधुओं को धोवन पानी देने से सुख मिलता है ।'
यह सुन कर उसने कहा--"लो महाराज ! " स्वामीजी धोवन पानी ले अपने स्थान पर आ गए।
३५. भैस का प्रसव हो, तब आएं
खारची में स्वामीजी पधारे। एक बहिन ने कहा - ', स्वामीजी ! मेरी भैंस का प्रसव हो तब पधारे, तब मैं दूध देने का अच्छा लाभ ले सकती हूं ।
वह कैसे ?
भैंस के प्रसव होने पर एक मास तक उसका दूध-दही देवी के चढ़ा खा-पी लेते हैं। उसका बिलौना नहीं करते । भैंस के प्रसव के समय आप पधारें ।"
तब स्वामीजी बोले --''कब तुम्हारे भैंस का प्रसव हो, कब हमें समाचार मिले और कब हम आए
?
३६. दीक्षा के डर से तो ज्वर नहीं हुआ ?
hear में एक बहिन कहती है- "स्वामीजी यहां पधारेंगे, तब साध्वी बनूंगी ।' इस प्रकार वह बात करती रहती है। कुछ दिनों बाद स्वामीजी वहां पधार गए।"
स्वामीजी के आने के डर से उसको ज्वर चढ़ गया। सांझ के समय वह दर्शन करने आई । तब स्वामीजी ने पूछा - "क्या हुआ ? इस प्रकार क्यों बोलती हो ।"
तब सुबकती हुई वह बोली - "स्वामीजी आप पधारे और मुझे ज्वर हो गया ।" तब स्वामीजी ने पूछा - " दीक्षा के डर से तो ज्वर नहीं हुआ है ?