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________________ १३२ भिख्खु दृष्टांत होता है ?" तब वह बोला- "इसमें भी पाप है।" तब स्वामीजी बोले-"तुम्हारे हिसाब से तुमने मां और वेश्या को क्या समान गिन लिया?" तब बह बहुत कठिनाई में फंस गया । लोग बोले-"मोटोजी ! तुमने मां और वेश्या को सरीखा मान लिया ?" ___३०. मुनि वस्त्र कैसे रख सकता है ? ढंढाड़ प्रदेश में स्वामी भीखणजी के पास कुछ सरावगी चर्चा करने के लिए आए और बोले---"मुनि धागे जितना भी वस्त्र नहीं रख सकता । जो रखते हैं, वे परिषह से दूर भागते हैं।" तब स्वामीजी बोले ---"परीषह कितने हैं ?" तब वे बोले-"परीषह बाईस।" तब स्वामीजी बोले-"पहला परीषह कौन-सा है।" तब वे बोले- "पहला परीषह भूख का है।" स्वामी ने पूछा- "तुम्हारे मुनि आहार करते हैं या नहीं ?" तब वे बोले--- "दो दिन से एक बार करते हैं।" तब स्वामीजी बोले-"तुम्हारे मुनि तुम्हारे ही हिसाव से प्रथम परीषह से पराजित हो गए।" तब वे बोले ---"हमारे मुनि भूख लगने पर आहार करते है।" तब स्वामीजी बोले---"हम भी ठंड लगने पर कपड़े ओढते हैं।" स्वामीजी ने फिर पूछा-."तुम्हारे मुनि पानी पीते हैं या नहीं ?" तब उन्होंने कहा-"पानी भी पीते हैं।" तब स्वामीजी बोले- "तुम्हारे मुनि इस हिसाब से दूसरे परीषह से भी पराजित हो गए।" तब वे बोले- "वे प्यास लगने पर पानी पीते हैं।" तब स्वामीजी बोले-"हम भी सर्दी आदि से बचने के लिए वस्त्र ओढते हैं । और यदि भूख लगने पर अन्य खाने तथा प्यास लगने पर पानी पीने से वे परीषह से पराजित नहीं होते हैं, तो ठंड आदि से बचने के लिए वस्त्र रखने पर भी हम परिषह से पराजित नहीं होते।" इत्यादि मनेकविध चर्चा से वे निरुतर हो गए। • तुम लड़ने की दृष्टि से आए हो? फिर दूसरे दिन वे बहुत इकट्ठे होकर आए । स्वामीजी शौचार्थ जंगल जा रहे थे। वे सामने मिले । टेढे होकर बोले--"हम तो चर्चा करने आए और आप शौच के लिए बाहर जा रहे हैं ?" उनके चेहरों की भाव-भंगिमा देखकर स्वामीजी बोले-"आज तो तुम लड्ने की दृष्टि से आए लगते हो।"
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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