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दृष्टांत : २१-२४ आया और बोला- "हे भीषण बाबा ! मैं भक्तों को लपसी खिलाता हूं, उसमें क्या होता है।" ___ स्वामीजी बोले-"लपसी में जैसा गुड़ डाला जाता है, वह वैसी ही मीठी होती
यह सुन वह बहुत राजी हुआ, भीखण बाबा ने बहुत अच्छा उत्तर दिया। लोग बोले -"भीखणजी ने मानो पहले ही उत्तर घड़ रखा था।"
२१. खेती गांव की सीमा पर"" सं० १८५३ में स्वामीजी ने सोजत में चतुर्मास किया। बहुत लोगों ने स्वामीजी के विचार को स्वीकार किया। तब किसी ने कहा-'भीखणजी ! मापने उपकार तो अच्छा किया, बहुत लोगों को तत्त्व समझा दिया।"
तब स्वामीजी बोले-'खेती तो की है, पर गांव की सीमा पर । यदि गधे उसमें नहीं घुसेंगे, तो वह टिक पाएगी, अन्यथा उसका टिकना कठिन है ।"
२२. लड्डू खण्डित है पर है बूंदी का स्वामीजी अपने गुरु से पृथक् हो गए । साध्वियों की दीक्षा नहीं हुई थी, तब की बात है। किसी ने कहा-"तुम्हारे तीर्थ तीन ही हैं। लड्डू है, पर वह खण्डित है।"
तब स्वामीजी बोले-"खण्डित तो है, पर है वह चौगुनी/चार गुणा चीनी, घी
का।"
२३. समालोचना भी आवश्यक रीयां गांव में स्वामीजी ने व्याख्यान में आचार की गाथा कही। उसे सुन मोतीराम बोहरा बोला-"भीखणजी! बन्दर बूढ़ा हो जाता है, फिर भी गूलांचें भरना नहीं छोड़ता। वैसे ही तुम बूढ़े हो गए, फिर भी तुमने दूसरों की टीका-टिप्पणी करना नहीं छोड़ा है।
तब स्वामीजी बोले- "तुम्हारे बाप ने हुण्डियां लिखीं, तुम्हारे दादे ने हुण्डियां लिखीं, तुमने भी पाट-पाटिए समटे नहीं।"
दीपचंद मुणोत ने मन में सोच अपने साथी-मित्रों से कहा- 'भीखणजी का ऐसा वचन निकला है, इसलिए लगता है कि इसके पाट-पाटिए सिमट जाएंगे।"
तब सब ने अपने-अपने रुपए टान लिए । कुछ ही दिनों में उसका दिवाला निकल गया, पाट-पाटिए सिमट गए---व्यापार ठप्प हो गया।
२४. हिंसा में पुण्य कैसे ? रीयां गांव में अमरसिंहजी का साधु तिलोकजी स्वामीजी के पास आकर बोला"सूत्र में अन्न-पुण्ण, पान-पुण्य आदि नव प्रकार के पुण्य बतलाए हैं। भगवान ने प्रदेशी की 'दानशाला' कहो, पर पापशाला नहीं कही। भगवान ने 'अन्नपुण्य' कहा, पर 'अन्नपाप' नहीं कहा । अरे ! तुमने तो दान-दया उठा दी।"
स्वामीजी बोले-"किसी ने अनुकम्पा कर किसी को सेर बाजरा दिया। उसमें
१. यह वाक्यांश है । इसका अर्थ है-दुकान उठाई नहीं, दिवाला निकाला नहीं ।