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________________ सतरह बोला-'मालिक की इच्छा बिना ऐसा करने में धर्म कैसे होगा ?' स्वामीजी बोले'एकेंद्रिय जीवों ने कब कहा-हमारे प्राण लेकर दूसरे को पोषो। एकेंद्रियों के प्राण लूटने से धर्म कैसे होगा ?' (२६४) किसी ने प्रश्न किया : 'एक बालक पत्थर से चींटियों को मार रहा था। किसी ने उससे पत्थर छीन लिया तो उसे क्या हुआ ?' स्वामीजी ने पूछा : 'छीनने वाले के हाथ क्या लगा ?' उसने जवाब दिया-'पत्थर ।' स्वामीजी ने कहा तुम्ही विचार लो छीनने वाले को क्या होता है ?' (१२४) दूसरा अभिनिवेश था—'एकेंद्रिय को मार पंचेन्द्रिय को पोषण करने में धर्म अधिक होता है।' स्वामीजी बोलेः 'एकेंद्रिय से द्वीन्द्रिय के पुण्य अनंत होते हैं । द्रीन्द्रिय से त्रीन्द्रिय के। त्रीन्द्रिय से चोइन्द्रिय के और चोइन्द्रिय से पंचेन्द्रिय जीव के । एक मनुष्य पंचेन्द्रिय को पैसे भर लट खिला कर उसकी रक्षा करे तो उसे क्या हुआ ?' इस प्रश्न का वह जवाब देने में असमर्थ हुआ। स्वामीजी बोले : 'जिस तरह द्वीन्द्रिय को मार पंचेन्द्रिय को बचाने में धर्म नहीं, वैसे ही एकेंद्रिय मार पंचेन्द्रिय बचाने में धर्म नहीं।' (२४८) किसी ने कहा-'भगवान् ने वनस्पति खाने के लिए बनाई है।' स्वामीजी ने पूछा : 'गांव में अगर एक भूखा सिंह आ जाए तो तुम क्या करोगे ?' वह बोला : 'मैं भाग कर गांव के बाहर चला जाऊंगा।' स्वामीजी ने कहा : 'भगवान् ने मनुष्य को सिंह का भक्ष्य बनाया है । तुम सिंह के भक्ष्य होकर क्यों भाग कर गांव के बाहर चले जाओगे ?' वह बोला : 'मेरा जी कष्ट पाने को तैयार नहीं। इसलिए भाग कर चला जाऊंगा।' स्वामीजी बोले : 'सर्व जीवों के विषय में यही बात जानो। मौत सबको अप्रिय है । उससे सब जीव दुःख पाते हैं।' (२३६) स्वामीजी के सामने जिज्ञासा थी-किसी ने पैसा देकर सर्प छुड़ाया । वह सीधा चूहे के बिल में गया। वहां चूहा नहीं था। सर्प छुड़ाने वाले को क्या हुआ ?' स्वामीजी ने कहा : 'किसी ने काग पर गोली चलाई । काग उड़ गया, उसके गोली नहीं लगी। गोली चलाने वाले को क्या होगा? काग उड़ गया इससे उसके गोली नहीं लगी यह उसका भाग्य पर गोली चलाने वाले को तो पाप लग चुका। इसी तरह किसी ने सर्प को छुड़ाया, वह चूहे के बिल में गया अन्दर चूहा नहीं यह उसका भाग्य । पर सर्प को छुड़ाने वाला तो हिंसा का कामी हो गया।' (२७२) - स्वामीजी ने कहा : 'एक मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य को कटारी से मारने लगा। वह मनुष्य बोला-'मुझे मत मारो।' तब वह बोला-'मेरे तुझे मारने के भाव नहीं हैं । मैं तो कटारी की परीक्षा करता हूं। देखता हूं वह कैसी चलती है।' तब वह बोला-गनीमत तुम्हारे कीमत आंकने को। मेरे तो प्राण जाते हैं।' (१०१) ___ अहिंसा के क्षेत्र में कार्य और भावना दोनों पर दृष्टि रखनी पड़ती है यह उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है । स्वामीजी ने अहिंसा के क्षेत्र में तुच्छ एकेन्द्रिय जीवों के प्राणों का भी उतना ही मूल्यांकन किया है जितना कि सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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