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निए दृष्टांत जद स्वामीजी बोल्या-साधु सामायक पड़ावै नहीं। सो किसी सामायक नै धको देई पाई है । एक मूहर्त्त नी सामायक कीधी। अनै एक मुहूर्त थयां सामायक तौ आय गई। पाडै सो तो दोष अतिचार नीं आलोवणा करै है । ते आलोवणा री भगवान री आज्ञा। जिण स्यूं पाडवा री टी सीखा है । अनै वर्तमान काल में पड़ावै नहीं। सो ते ऊठ नै परहो जाय तिण आश्री पड़ावै नहीं । पिण दोष री आलोवणा करायां सीखायां दोष नहीं।
२८७. एहोज भाव भक्ति करसी
एक जणौ स्वामीजी सूं चरचा करतां ऊधौ अवळौ बोलै । जद स्वामी जी नै किण हि कह्यौ-- महाराज ! ए ऊधौ अंवलौ बोलै तिण सू कांई चरचा करो।
___ जद स्वामी बोल्या-नान्हों बालक समज न आई जितरै बाप री मूंछां खांचे। पिता री पाग मै देवै । पिण समज आयां पछै ऊ हीज चाकरी करै । ज्यूं साधां रा गुण न ओळख्या जितरै ए ऊधौ अवलौ बोलै गुण ओळख्यां पछ एहीज सेवा भक्ति करसी ।
२८८. अबारू टीपणा तेज है
___ साध राते वखाण देव । भेषधारी पिण राते वखाण देवै । साध बाजार मै ऊतरै । देखादेख भेषधारी पिण बाजार मै ऊतरै। इम देखादेख कार्य करै । पिण शुद्ध श्रद्धा आचार विनां पाधरी न पड़े । तिण ऊपर स्वामीजी दृष्टंत दीयौ-एक साहूकार मै पोते तो समझ नहीं अन पाड़ोसी नी देखादेख व्यागार करै । पाड़ोसी वस्तु खरीदै तिका वस्तु ओ पिण खरीदै। जद पाड़ोसी विचारयौ ओ देखादेख कर है के मांहे समझ है । जद पाड़ोसी बेटा नै कहै, अबारू टीपणां तेज है, सो देसावरां सूं खरीदणा। थोड़ा दिनां मै एक-एक रा दोय-दोय हुवै है। __एक बात सुण नै साहूकार देसावर जाय नै टीपणां जूंना नवा खरीद्या। सो पूंजी रौ नास थयौ।।
ज्यं साधां री देखादेख भेषधारी पिण कार्य करै पिण शुद्ध श्रद्धा आचार विना कांई गरज पळे नहीं।
२९९. देवाळौ किम ऊतर ? किणहि कह्यौ-भेषधारी पिण तपसा मासखमणादिक करै। लोच करावै । धोवण ऊन्हौं पांणी पीवै । या करणी यांरी यूं ही जासी कांई ?