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दृष्ट
जद आर्या बोली - स्वामीनाथ ! मन में आई तो खरी | जद स्वामीजी और साध साधव्यां नै आरा रै जै दिन जाणौ वरज arat | आचार्य नै साध - साध्वी त्यांरी वरजणा न कीधी ।
२६०. ग्रहस्थ र भरोसे रहिणो नहीं
संवत १८५७ स्वामीजी पुर चौमासौ कीधो । सो फौजवाळा आवता जाने स्वामीजी विहार करवा लागा ।
जद भाया बोल्या - आप विहार क्यूं करौ ।
जद स्वामीजी बोल्या- आगे अठे टौळावाळां चोमासौ कीधौ । फौज राजोग सूं गाम रा लोक कई परहा गया ।
पिण टोळावाळा बोल्या - म्हे तो चौमासा मै बिहार न करां । इसी अब सूं विहार न कधौ । पछे फौज आई टोळावाळा नागोरयां री गुवारी मै जाय रह्या । त्यांनें पकड़ने को माल बतावो । मरचां री धूई दीधी । मरचां रौ तोबड़ौ मूंहढे बांध्यो । परीषह घणौ दीधौ । तिण कारण विहार करण रा भाव है । रहिवा रा भाव नहीं ।
जद भाया बोल्या - महाराज ! आप विहार मत करो। म्हे आपनें आछी तरै लेइ जावसां । आपनै मेलने जावां नहीं | जद स्वामीजी सुसता रह्या ।
पछे फोज रौ हळबळी पड़यौ जद भाया तो रात्रि रा कानी कानी न्हास गया । प्रभाते स्वामीजी पिण विहार करने गुरला पधारया । केई भाया पिण गुरलां आया । त्यांने स्वामीजी कह्यो - थें कहता हूंता म्हे आपनै लेइ जासां पिण थे तो न्हास नै उरहा आया | जद भाया बोल्या - म्हे मगरी ऊपर ऊभा देखता था । उवे स्वामीजी पधारै, उवे स्वामीजी पधारै ।
जद स्वामीजी बोल्या - अळगा ऊभा देख्यां कांई हुवै । थे कहता था साथै रहिसां पण साथै तौ रह्या नहीं । सो ग्रहस्थ रौ कांइ भरोसौ । ग्रहस्थ र भरोसे रहिणौ नहीं ।
२६१. हूं मार्ग जाणूं हूं
बली सूं विहार करने स्वामीजी चेलावास पधारे जद मार्ग पूछवा लागा | जद जैचंदजी श्रावक बोल्यौ - स्वामीनाथ ! मार्ग तौ हू जाण छू सुखे सुखे पधारौ । आगे नीलां में ले जाय न्हांख्या । मार्ग चोखो लाधौ नहीं । जद स्वामीजी जैचंदजी ने घणौ निषेध्यो- तूं कहितो थो नी-हूं मार्ग जांणूं छं ।
जद जैचंदजी बोल्यो - हंती मार्ग चूक गयौ ।
स्वामीजी बोल्या - ग्रहस्थ रे भरोसे रहिणौ नहीं ।