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दृष्टांत : २४६-२४८
जद स्वामीजी बोल्या-देतां नै ना कहौ भावै थांरो खोसल्यौ। पछै दादूपंथी चालतो रह्यो ।
२४६. थाने धन है
पोता नी महिमा बधारवा छळ सूं बोलै ते ओळखायवा अर्थे स्वामीजी दृष्टंत दियौ-किण हि बेलौ कीयो । ते आप रौ बेलौ चाबी करवा उपवासवाळा रा गुण करै-तुं धन है सो इण करली ऋतु मै उपवास कीयौ है।
जद उपवासवाळी बोल्यौ-म्हे तो उपवास ईज कीयौ है, पिण थे बेलो कीधौ है सो थाने धन है।
इम छल वचन करी आप रौ बेलों चावौ करै ते मानी अहंकारी जाणवौ।
२४७. कठे दर्शन देवू ? रुघनाथजी री मा पिण घर छोड़ने उणां मै भेष लीयो हूंतौ । सो डील मै कारण पड्यौ । जद रुघनाथजौ बोल्या-भीखणजी संसार रै लेखै म्हारी मां नै दर्शन दीजौ। जद स्वामीजी दर्शन देवा गया। थानक जायने त्यां आर्या नै पूछयौ। __जद आर्या कह्यौ --उवै तौ गोचरी गया। जद स्वामीजी पाछा आया।
जद रुघनाथजी कह्यौ-थे दर्शन दीया ?
जद स्वामीजी बोल्या-किसी ठीक किण मेड़ी ऊपर गोचरी करै, सो हूं कठे दर्शन देवं ?
आ बात टोळा माहि थकां री छै ।
२४८. धरम हुवै के पाप ? . केई हिंसाधर्मी कहै—एकेंद्री विगै पंचेंद्री रा पुन्य घणा तिण तूं एकेंद्री मार पंचेंद्री बचायां धर्म घणौ हुवे ।। __जद स्वामीजी बोल्या-एकेंद्री थी बेंद्री रा पुन्य अनंत गुणा । बेंद्री थी तेंद्रो रा पुन्य अनंत गुणा । चउरेंद्री थी पंचेंद्री रा पुन्य अनंत गुणा । अनै कोई पंचेंद्री मरतो हुवै तिणनै पइसाभर लटां खवाय नै बचायौ तिणनें धर्म हुवै के पाप हुवै ? इम पूछया जाव देवा असमर्थ थयो। ... स्वामीजी बोल्या-जिम बेंद्री मार पंचेंद्री बचायां धर्म नहीं तिम एकेंद्री मार पंचेंद्री बचायां धर्म नहीं।