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दृष्टांत : २१९-२२०
जद स्वामीजी पूछो - 'कयरे मग्गे अक्खाया' इण अर्थ कहौ । जद ऊ ब्राह्मण बोल्यौ -कयरे-कहतां केर । मग्गे कहतां मूंग । अक्खायाकहतां आखा न खाणा ।
जद स्वामीजी बोल्या - औ तो अर्थ आयौ नहीं ।
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जद ऊ बोल्यो - इणरौ अर्थ किम छै ।
जद स्वामीजी बोल्या - ' कयरे' कहतां किसा, ' मग्गे' कहतां मोक्ष रा मार्ग, ‘अक्खाया' कहतां तीर्थंकरे कह्या । एहनौ अर्थ इम छै ।
२१९. केबली राज किम करें !
संवत १८५४ स्वामीजी ४ साधां सूं खैरवै चौमासा कीधौ । तिहां पज्जुसणां में केयक श्रावक गच्छवास्यां कनै सुणवा गयां । उपाश्रय बखांण सुणनै पाछा स्वामीजी कनै आया नै कहिवा लागा - - स्वामीनाथ! आज उपाश्रय मैं खांण सुणीयौ तिणमै इसी बात बाची- कुर्मापुत्र केवलज्ञान ऊपना पछै ६ मास राज कीधौ । एतलै दोय साध आय ऊभा । वंदना न करी ।
जद कुर्मापुत्र बोल्या - म्हांने केवलज्ञान ऊपनौ है नै थे वंदना न करौ सो किन कारण ?
जद साध बोल्या - आप केवली छौ पिण लिंग गृहस्थ नौ छै तिण कारण आपने वंदना म्हे न कीधी ।
जद कुर्मापुत्र बोल्या --ठीक कही । अबै जाणीयौ ।
आ बात आज उपाश्रय सुणी सो साची है कांई ?
जद स्वामीजी बोल्या- -आ बात साची जाण जिणमै समक्त ही नहीं । राज करते तो मोह कर्म रा उदय थी करें। अनै केवली मोह कर्म नै क्षय कियौ । सो केवली थया पछै राज किम करें । आ बात बाचणवाला में तौ समक्त प्रतख न दीसे । पिण थां सुणवा वाळां री पिण संका पड़े है । इम कही समझाय दीया |
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२२०. बुद्धि बिनां समदृष्टी किम हुवे ?
कैलवा में नगजी आंख्यां अखम श्रावक हुतौ । बुद्धि घणी कोइ नहीं । बीरभांणजी कह्यौ हे नगजी नै समदृष्टी कीधौ ।
जद स्वामीजी बोल्या - समदृष्टि आवे जिसी तौ उणरी बुद्धि दीसे नहीं सो समदृष्टी किसत कीधौ, कांई सीखायौ ।
जद बीरभांजी बोल्या - 'ओलखणा दोहरा भव जीवां' आ ढाल सिखाइ । अन एक नंदण मणीयारा नौ बखांण सीखायौ ।
पर्छ कैलवै स्वामीजी पधारघा । नगजी नै स्वामीजी पूछ्यौ - तूं नंदणमणीयारा नौ बखाण सीख्यौ है, 'सो औ मणीयौ लकड़ा रौ है के सोना रौ है,