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दृष्टांत : १९४-१९५
१९४. संका रौ समाधान टीकम दोसी रै अनेक बोलां री संका पड़ी । गुणतीस ओलिया रै आसरै लिखनै ल्यायौ। चरचा करवा लागौ । बोलै घणौ । जद स्वामीजी ओळिया बांच-बांच में उणरा जाव लिखनै बचाय देता। छबीस ओळियां रै आसर तौ संका मेट दीधी। जद घणौ रोयौ अनै बोल्यौ आप न हुंता तो म्हारी कांड गति हंती । आप तीर्थंकर केवली समान हो। इत्यादिक घणां गुण कीया। स्वामीजी री जोड़ां सुणनै घणो राजी हुवी। बोल्यो ए जोड़ा नहीं, एह तो सूत्रां री नियुक्ति छ।
घणी सेवा कर नै पाछौ कछ देश गयौ । वले संका पड़ी, जद चौविहार संथारौ कीधौ। म्हारी संका तौ सीमंधर स्वाम मेटसी। पन्द्रह दिनां रै आसरै संथारौ आयौ । आऊखौ पूरौ कीयो।
१९५. अपछंदापणो सिरे नहीं
चंद्रभाण नीकळवा लागौ जद स्वामीजी बोल्या-संलेखणा संथारौ करणौ सिरै पिण साधां ने छोडने अपछंदापणौ सिरे नहीं।
जद ऊ बोल्यौ-म्हैं नै भारमलजी दोन जणां संलेखणां करां । जद स्वामीजी बोल्या-आंपे दोन जणां करां। जद चंद्रभाणजी बोल्या-थां साथै तौ न करूं भारमलजी साथै करू। स्वामीजी फेर कह्यौ-आंपे करां ।
पछै चंद्रभाण तिलोकचंद दोनूं जणां मांन अहंकार रै घस टोला बारै नीकल्या । ते सह विस्तार तौ स्वामीजी कृत रास थी जाणवी। ते जाता थका बोल्या-विस्वा तो म्हाराइ घटेला पिण थांरा श्रावका नै तौ दाहे बलीया आकड़ा सरीखा करू तो म्हारौ नाम चंद्रभाण है।
जद चतुरोजी श्रावक बोल्यौ-थे तो थोड़ा कोश हालौ अन हूं कासीद मेलनै ठाम-ठाम खबर कराय देसू सो थाने मन करनै पिण कोइ बंछ नहीं। सो दाहे बलीया आकड़ा जिसा थे इज हुवोला।
बाद मै उठा सू चालता रहा। पछै आगै रुघनाथजी मिल्या । त्यां कह्यो-थेंम्हां मै परहा आवौ। थारी रीत राखसां । वै उणां री बात मानी नहीं।
० भीखणजी तो पगै है ? पछै रोयट रा भायां में किणहि कह्यौ-भीखणजी रा टोळा सं चंद्रभाण तिलोकचंद दोन भणणहार साध नीकल गया।
जद श्रावक बोल्यौ-भीखणजी तौ पगै है ? तो कहै-उवै तो है। जद भाया बोल्या-भीखणजी है तौ साध और मोकला ई हृता दीसै