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श्लो. : 2
चैतन्य-घन भगवान् आत्मा को क्या पहचान पाएगा?... अहो प्रज्ञात्माओ! ध्रुव आत्म-द्रव्य को स्वीकार कर परम तत्त्व को प्राप्त करने का पुरुषार्थ करना चाहिए। वह आत्मा और कैसी है?" "स्थित्युत्पत्तिव्ययात्मकः " स्थित, ध्रौव्य, उत्पत्ति / उत्पाद उत्पन्न होने योग्य, व्यय / विनाश होने योग्य है, इसप्रकार ध्रौव्य, उत्पाद और व्यय जिसका स्वरूप है, वह आत्मा है । द्रव्य का लक्षण सत् है और वह सत् उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यात्मक है, द्रव्य की त्रि - लक्षण - अवस्था त्रिकाल है, ऐसा एक क्षण भी नहीं होता, जब द्रव्य में त्रि-लक्षण-धारा का वियोग होता हो, वह तो प्रति-क्षण प्रवहमान रहती है, शुद्ध द्रव्य शुद्ध परिणमन होता है। अशुद्ध द्रव्य में अशुद्ध रूप परिणमन होता है । जीव द्रव्य के साथ अनूठी व्यवस्था है; अशुद्ध जीव में एक-साथ दो द्रव्यों में उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यता घटित होती है। अशुद्ध जीव असमान जातीय कर्म- नोकर्म के साथ रहता है । जीव के भाव - कर्मों का परिणमन भिन्न चलता है, द्रव्य-कर्मों का परिणमन भिन्न चलता है । अज्ञ प्राणी असमान जातीय पर्याय की भिन्नता को नहीं समझने के कारण क्लेश को प्राप्त होता है, जिसमें उत्पाद-व्यय- ध्रौव्यात्मक द्रव्य होता है । द्रव्य का द्रव्यत्व-भाव
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स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
कालिक धौव्य है । यह जीव मोह के वश हुआ पर के परिणमन को स्व का परिणमन स्वीकार कर व्यर्थ में क्लेश का भोजन हो रहा है, थोड़ा भी स्व- विवेक का प्रयोग कर ले, तो ज्ञानियो! लोक में कहीं भी जीव को कष्ट का स्थान नहीं है । अर्थ- पर्याय का परिणमन षट् गुण-हानि - वृद्धि - रूप प्रति - पल चल रहा है, इसे आगम - प्रमाण से ही जाना जाता है, वचन - अगोचर है। शरीर का परिणमन भिन्न है, आत्म- गुणों का परिणमन भिन्न है, व्यक्ति कितना ही राग-रूप पुरुषार्थ कर ले, परन्तु पुरुष ( आत्मा ) के द्रव्यत्व का जो परिणमन है, उसे नहीं रोक सकता । द्रव्य में जो सहज परिणमन है, ज्ञानी! वह किसी के प्रतिबन्धक की अपेक्षा नहीं रखता, जैसे- पुरुष का परिणमन निरपेक्ष है । ज्ञानियो! इसप्रकार को अच्छी तरह से समझना कि - उत्पाद-व्यय- ध्रौव्य धर्म कभी किसी द्रव्य - क्षेत्र - काल-भाव की भी अपेक्षा नहीं रखता कि मैं अमुक द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव के होने पर परिणमन करूँगा । वह तो त्रिकाल सर्व क्षेत्रादि में परिणमन-शील है, पदार्थ किसी भी अवस्था में हो, पर परिणामीपन से रहित कभी नहीं रहता। देखो! एक रागी पुरुष अपने वर्तमान शरीर को हृष्ट-पुष्ट रखने के लिए