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स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
श्लो. : 2
है, सर्वप्रथम इस पर विचार करें, चतुर्गति-भ्रमण कार्य है, मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग आदि संसार-भ्रमण के कारण हैं। ____ अहो मुमुक्षुओ! संसार के कार्य को समाप्त करना चाहते हो, तो ध्यान दो, मिथ्यात्वादि कारणों का अभाव सर्वप्रथम करना पड़ेगा, लोक में अज्ञ प्राणी कार्य अच्छा चाहते हैं, पर कारणों पर ध्यान नहीं देते, सहज भाव से स्वयं विचार करो कि कैसे कार्य श्रेष्ठ हो सकेगा, सिद्धान्त का यह नियम है कि "कारणसदृशं कार्य भवतीति" कारण के सदृश ही कार्य होता है। बन्ध के जो कारण हैं, वे ही संसार के कारण हैं, बिना बन्ध हुए संसार नहीं चलता, इसलिए तत्त्व-ज्ञानियो! संसारातीत निर्वाणभूत कार्य फलित करना है, तो सर्वप्रथम संसार-वृद्धि के कारणों का त्याग करना होगा और मोक्ष के कारणों में संलग्न होना होगा, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, -ये कारण-समयसार हैं। निर्वाण-रूप उसका फल कार्य-समयसार है। जिन-शासन में दो ही बातें हैं -कारण, कार्य; -जिसे हम अनेक प्रकार से कह सकते हैं- मार्ग, मार्ग का फल, आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ने नियमसार ग्रन्थ में कारण-कार्य-भाव को मार्ग एवं मार्ग का फल कहकर समझाया है, यथा
मग्गो मग्गफलंति य, दुविहं जिणसासणे समक्खादं। मग्गो मोक्ख उवाओ, तस्स फलं होइ णिव्वाणं।।
-नियमसार, गा. 2 मार्ग और मार्ग का फल, इन दो प्रकारों का जिन-शासन में कथन किया गया है, मार्ग तो मोक्ष का उपाय है और उसका फल निर्वाण है, यह जो उपाय कहा है, वह कारण है; फल जो कहा है, वह कार्य है। सात तत्त्वों में जब बन्ध-तत्त्व का विचार करते हैं, तब आस्रव कारण दिखता है, बन्ध कार्य है; यह संसार का कारण है; जब परमार्थ-दृष्टि डालते हैं, तब संवर-निर्जरा-तत्त्व कारण-रूप हैं, मोक्ष-तत्त्व कार्य-रूप है, यह कारण-कार्य-भाव सातों तत्त्वों में लक्षित होता है, सात तत्त्व जीव-पुद्गल के संयोग-भूत हैं, इसलिए कथंचित् आत्मा सात-तत्त्वात्मक है और आत्मा कैसा है?.... आचार्य-देव कहते हैं -"ग्राह्य भी अग्राह्यी भी; ज्ञानी! -यही तत्त्व-व्यवस्था है, इसे ही तो समझना है, इसे समझने के लिए स्याद्वाद-शासन का आलम्बन लेना आवश्यक है, अज्ञ-पुरुषों ने आत्मा के धर्मों को समझा ही कहाँ है? .....बिना अनेकान्त दृष्टि से जो तत्त्व को समझना चाहते हैं, वे पलाश-पुष्प से सुगंध प्राप्त करना चाहते हैं। सर्वप्रथम दृष्टि को निर्मल करो, फिर आत्म-तत्त्व के सत्यार्थत्व का ज्ञान होगा, आत्मा