________________
श्लो. : 12
स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
1117
ज्ञानियो! पुनः ध्यान दो- पूर्व का पुरुषार्थ, वर्तमान का क्षयोपशम ये आत्मा की ही अवस्थाएँ हैं, अन्य की नहीं समझना, स्वावरणीय कर्म का क्षयोपशम जैसा होता है, वैसा ही ज्ञान-गुण हानि-वृद्धि को प्राप्त होता है, ज्ञेय बहिरंग साधन तो हो सकते हैं, परंतु अन्तरंग साधन तो स्व-जीव की उपादान की योग्यता ही है, अतः यहाँ पर स्पष्ट समझना- भिन्न ज्ञेयों से यानी पदार्थों से ज्ञान उत्पन्न नहीं होता, निज-ज्ञाता, निजज्ञेय ही ज्ञान का जनक है, पर-ज्ञेयों के जानने पर निज-ज्ञान ही वृद्धि को प्राप्त होता है, यानी द्रव्य-श्रुत आलम्बन है, भाव-श्रुत ही ज्ञान है। देखो, शास्त्रों में भी ज्ञान नहीं है, वह द्रव्य-श्रुत है, शास्त्रों में ज्ञान होता, तो-फिर जिन अलमारियों में शास्त्र विराजे हैं, वे भी ज्ञानी हो जाएँगी, ज्ञान तो जीव द्रव्य का ही धर्म है, न कि पुद्गल का। पुद्गल के धर्म तो स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण हैं, इन गुणों का जीव में अत्यन्ताभाव है। सम्यग्ज्ञान को आचार्य-देव ने प्रदीपवत् कहा है जैसे- दीपक स्व को उद्योतित करता है, वैसे ही पर को भी उद्योतित करता है; ऐसा नहीं कि वह स्व-स्व को ही प्रकाशित करे, जो पर को प्रकाशित करता है, वह स्व को भी प्रकाशित करता है। वैशेषिक मत ज्ञान को मात्र पर-प्रकाशी मानता है, पर उनका यह कथन सत्यार्थ नहीं है, ज्ञान स्व-पर प्रकाशी ही होता है, जो ज्ञान अन्य को जानता है, वही ज्ञान स्वयं को भी जानता है। परीक्षामुख में उल्लेख आता है__ "प्रदीपवत्"।
-परीक्षामुखसूत्र-2 अर्थात् दीपक की तरह। जिसप्रकार दीपक स्व-पर-प्रकाशक होता है, दीपक में स्व-प्रकाशता के बिना अर्थ-प्रकाशकता नहीं बन सकती है। दीपक स्व-प्रकाशक होकर ही अर्थ-प्रकाशक होता है। इसीप्रकार प्रमाण में भी स्व-प्रत्यक्षता के बिना उसके द्वारा प्रतिभासित अर्थ में प्रत्यक्षता नहीं बन सकती है, तात्पर्य यह है कि प्रमाण और दीपक दोनों स्व-पर प्रकाशक हैं। इसप्रकार प्रत्यक्षादि सब प्रमाणों में रहने वाला तथा सन्निकर्षादि समस्त अप्रमाणों से व्यावृत ज्ञान प्रकाश है; यथास्वापूर्वार्थ-व्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणम्।
-परीक्षामुखसूत्र-1 अर्थात् अपने और अपूर्व अर्थ के निश्चयात्मक ज्ञान को प्रमाण कहते हैं। यहाँ प्रमाण लक्ष्य है और "स्वापूर्वार्थ-व्यवसायात्मकं ज्ञानं" उसका लक्षण है। प्रमाण के लक्षण में पाँच विशेषण दिये गये हैं- स्व, अपूर्व, अर्थ, व्यवसायात्मक और ज्ञान। प्रत्येक